जीवन परिचय (Biography) – वैज्ञानिक टी.आर. शेषाद्री (T. R. Seshadri Indian chemist )
टी.आर. शेषाद्रि ( T. R. Seshadri Indian chemist )भारत के कार्बनिक रसायन शास्त्र के जाने-माने वैज्ञानिक व लेखक थे। भारतीय औषधीय और अन्य पौधे के ऊपर अनुसंधान के लिए ये विश्व प्रसिद्ध हैं। इनका पूरा नाम प्रो. तिरुवेंकट राजेंद्र शेषाद्रि (Thiruvengadam Rajendram Seshadri) था।
इन्होंने पेड़ पौधे के रंग और गंध के ऊपर अनेकों अनुसंधान किया। अपने अथक शोध के द्वारा उनहोंने पेड़ों में रंग व गंध देने वाले रसायनों की खोज की। इन रसायनों के खोज के बाद उन्होंने इसे कृतिम रूप से लैब में विकसित करने की भी कोशिस की।
वे एक वैज्ञानिक, लेखक और रसायन शास्त्र के परम ज्ञाता थे। वे दिल्ली विश्वविध्यालय के रसायन विज्ञान संकाय के विभागाध्यक्ष भी रहे। विज्ञान में उनके अमूल्य योगदान के कारण भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण से अलंकृत किया।
आईए इस लेख में हम इस महान भारतीय रसायनज्ञ के जीवन के बारे में विस्तार से जानते हैं।
भारतीय रसायनज्ञ टी.आर. शेषाद्री की जीवनी – Biography of TR Seshadri in Hindi
प्रारम्भिक जीवन
महान रसायनशास्त्री टी.आर. शेषाद्रि का जन्म 3 फरवरी 1900 ईस्वी में तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली जिले के कुलीथलाई गाँव में हुआ था। उस बक्त यह ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आता है।
टी.आर. शेषाद्रि जी के पिता का नाम थिरुवेंगदाथा आयंगर था। उनके पिता पेशे से टीचर थे। शेषाद्रि जी अपने पाँच भाई में तीसरे नंबर पर थे। टी.आर. शेषाद्रि बचपन से ही पढ़ने में बहुत ही तेज बुद्धि के थे।
शिक्षा दीक्षा
थिरुवेंगदम राजेंद्रम शेषाद्री FNA, FRS की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला से हुई। उसके बाद शेषाद्री जी का दाखिला श्रीरंगम के मंदिर स्कूल में हुई, जहाँ से इन्होंने हाईस्कूल पास की।
उसके बाद वे तिरुचिरापल्ली गए जहाँ से उन्होंने नेशनल कॉलेज हायर सेकेंडरी स्कूल से इंटर तक की अपनी पढ़ाई पूरी की। आपको स्नातक की पढ़ाई के लिए मद्रास जाना पड़ा। जहां से आपने 1920 में बी.एस.सी की परीक्षा पास की।
स्नातक के स्नातकोतर अर्थात एम ए सी की भी पढ़ाई उन्होंने मद्रास विश्व विध्यालय से किया। इस दौरान उन्होंने दो शोध पुरस्कार, कर्जन पुरस्कार और विलियम वेडरबर्न पुरस्कार जीते। इस दौरन वे अपने अद्भुत प्रतिभा के वल पर छात्रवृति प्राप्त करने में कामयाब हुआ।
उच्च शिक्षा के लिए विदेश गमन
फलतः वे एम ए सी करने के बाद पी एच डी के लिए इंगलेंग के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय चले गए। यहाँ उन्होंने महान रसायनज्ञ तथा विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट रॉबिन्सन के निर्देशन में शोध कार्य में जी जान से जुट गए।
मैनचेस्टर में मलेरिया-रोधी दवाओं के विकास और यौगिकों के संश्लेषण पर शोध करते हुए उन्होंने 1929 में पी एच डी की डिग्री हासिल की। अपने प्रवास के दौरान उन्हें जॉर्ज बार्गर और नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रिट्ज प्रेगल से साथ भी काम करने का मौका मिला।
करियर
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बात वे स्वदेश वापस आ गए। यहाँ उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर कोयंबटूर में करीब चार साल तक काम किया। यहाँ पर रहते हुए उन्होंने प्लांट केमिस्ट्री पर अपना शोध कार्य किया।
इसके बाद वे सन 1934 में आंध्र विश्वविद्यालय से जुड़ गए। इस विश्वविधालय में इन्होंने लगातार 15 वर्षों तक समय दिया और रसायन विज्ञान विभागाध्यक्ष के पद को सुशोभित किया।
इस दौरण उन्होंने कई प्रयोगशाला की स्थापना और उनके विकास पर जोड़ दिया। जब भारत 1947 में आजाद हुआ तब उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग के प्रमुख के रूप में नियुक्ति हुई।
यहाँ पर कार्य करते हुए उन्होंने प्राकृतिक उत्पादों, जैसे टेरपेनोइड्स, अल्कलॉइड्स और क्विनोनोइड्स पर केंद्रित शोध संस्थान की स्थापना की। सन 1949 से 1965 तक वे दिल्ली विश्व विधालय से जुड़े रहे।
आपने 60 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी तथा भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित कीये।
योगदान
शेषाद्रि जी भारत में रसायन विज्ञान को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय योगदान माना जाता है। उन्होंने आंध्र-विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान संकाय के प्रमुख रहते हुए कई प्रयोगशालाओं और विभागों की स्थापना की।
साथ ही यहाँ पर शोध विद्यालय की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुडने के उन्होंने कई नये शोध संस्थान की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई।
उन्हें मुख्यतयः ऑक्सीजन हेट्रोसायक्लिक्स में पादप रसायन विज्ञान पर व्यापक शोध के लिए जाना जाता है। इसके अलावा उनका शोध डीमेथिलेशन, हाइड्रोजनीकरण, डिहाइड्रोजनीकरण, परमाणु मिथाइलेशन, एलिलेशन, प्रीनिलेशन आदि पर केंद्रित रहा।
प्रमुख रचना
अपने जीवन काल में उन्होंने 150 से ज्यादा छात्रों को डॉक्टरेट अध्ययन में मार्गदर्शन किया। उनके 1000 से अधिक शोधपत्र तथा दो प्रसिद्ध पुस्तकों का भी प्रकाशन हुआ।
उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध पुस्तक के नाम हैं, ‘विटामिन और हार्मोन की रसायन शास्त्र’ तथा ‘भारत में वैज्ञानिक और धार्मिक संस्कृति की उन्नति’।
पुरस्कार और सम्मान
देश के अनेकों विश्वविध्यालय ने टी.आर. शेषाद्रि को मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। भारत सरकार ने रसायन विज्ञान में महती योगदान और देश का नाम रोशन करने लिए 1963 में पद्म भूषण से सम्मानित किया।
उन्हें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा मेघनाद साहा पदक प्रदान किया गया। इंडियन केमिकल सोसाइटी ने उन्हें आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे मेडल और आचार्य ज्ञानेंद्र घोष मेडल से अलंकृत किया।
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने सन 1942 में अपना फ़ेलो नियुक्त किया। सन 1960 में इंगलेंड के रायल सोसाइटी ने टी.आर. शेषाद्रि को अपना फ़ेलो बनकार सम्मानित किया।
इसके एक साल बाद सन 1961 में जर्मन स्थित विज्ञान अकादमी लियोपोल्डिना ने उन्हें अपना फ़ेलो नामित किया। वे सन 1967 से 1968 तक भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष पद पर आसीन रहे।
निधन
महान रसस्यन विज्ञानी टी.आर. शेषाद्रि का 75 वर्ष की अवस्था में 27 सितंबर 1975 को चेन्नई में निधन हो गया।
सन 1965 में सेवानिवृत्ति के बाद भी वे इस दिल्ली विश्वविधालय से जुड़े रहे। जीवन के अंतिक वर्षों तक वे शोध कार्य में लगे रहे। इस प्रकार उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन रसायन विज्ञान को समर्पित कर दिया।
बाहरी कड़ियाँ (External Links)
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