जानें मकर संक्रांति के दिन कुम्भ मेले की शुरुआत होती है क्यों?
मकर संक्रांति के दिन कुम्भ मेले की शुरुआत होती है क्यों?- भारत में मनाये जाना वाला मकर संक्रांति एक प्रसिद्ध हिन्दू त्योहार है। नए साल के आगमन के बाद यह पहला त्योहार होता है। यह त्योहार तब मनाया जाता है जब सूर्य मकर राशि प्रवेश करती है।
समानतः यह त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन Makar Sankranti 2023 में 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। समूचे भारत में यह त्योहार अलग अलग नामों और तरीके से मनाया जाता है।
यह त्योहार पतंग उड़ाकर, गंगा व अन्य नदियों में पवित्र डुबकी लगाकर मनाया जाता है। इस अवसर पर तिल से बने विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है। इस अवसर पर गरीबों को दान देना महापुण्य दायक समझा जाता है।
इस त्योहार को फसल से भी जोड़कर देखा जाता है। किसान भगवान को अच्छी फसल के लिए धन्यवाद के रूप में भी यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग सारे गीले सिकबे भूलकर एक दूसरे से गले मिलते हैं।
एक दूसरे को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देते हैं। लेकिन इस लेख में हम जानेंगे की कुम्भ मेले की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से होती है क्यों
कुम्भ मेले का मकर संक्रांति के दिन शुरू होने का कारण
कुम्भ मेल मकर संक्रांति के दिन क्यों शुरू होती है इसके पीछे पौराणिक कथा छुपी है। जब महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण देवगन श्रीहीन होने लगे और दैत्यों से पराजित होने लगे। तब वे भागकर ब्रह्माजी की शरण में गए।
ब्रह्माजी ने देवताओं की बातों को सुनकर भगवान विष्णु की शरण में जाने को कहा। तब विष्णु जी ने उन्हें दानवों के साथ मिलकर समुन्द्र मंथन की सलाह दी।
फलतः अमर होने के लिए विष्णु जी के कहने पर देवता और दानव मिलकर समुन्द्र मंथन का फैसला किया। इसके लिए सर्प राजा वासुकी को रस्सी और मंदरा पर्वत को मथनी बनाकर इस्तेमाल किया गया।
पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं एवं दानवों ने मिलकर समुन्द्र मंथन किया था। समुन्द्र मंथन के फलसरूप चंद्रमा, धन की देवी लक्ष्मी और जहर सहित चौदह प्रकार के रत्नों निकले।
इन चौदह रत्नों के नाम थे :
1. कालकूट विष, 2. कामधेनु गाय, 3. उच्चैःश्रवा, 4. ऐरावत हाथी, 5. कल्प वृक्ष, 6. माता लक्ष्मी, 7. चन्द्रमा, 8. शंख, 9. कौस्तुभ मणि, 10. अप्सरा, 11. वारुणी (एक प्रकार की मदिरा) 12. पारिजात, 13. भगवान धन्वन्तरि, 14. अमृत.
समुद्र मंथन के दौरन सबसे पहले कालकूट नामक विष निकला। विष को पाकर सभी देवगन, दानव चिंतित हो गए। क्योंकि कालकूट विष से पुरे संसार का नाश होने का खतरा था। तब सब देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से विनती की।
भगवान शिव तो भोले भण्डारी ठहरे। उन्होंने संसार के समस्त प्राणी की रक्षा हेतु उस कालकूट विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव के कारण ही उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाये।
कहा जाता है इसी दौरण विष की कुछ बूँदें छलककर धरती पर गिर पड़े जिसे सर्प, बिच्छू सहित कई जीवों ने ग्रहण कर विषैला हो गया।
लेकिन सागर मंथन के अंत में जो सबसे बहुमूल्य चीज निकला वह था “अमृत से भरा कलश”। लेकिन अमृत कलश दानव लेकर भाग खड़े हुए। अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों के बीच निरन्तर संघर्ष हुआ।
दानव अमृत कलश लेकर आगे-आगे भाग रहे थे और देवगण उनका पीछा करते हुए छीनने का प्रयास कर रहे थे। कहते है की जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में मकर संक्रांति के दिन प्रवेश किया।
अमृत के बूंद गिरने से यह स्थान आती पावन हो गया। तभी से इन स्थानों पर प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता होता है। यही कारण है की कुम्भ मेले की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से होती है।
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