भास्कराचार्य की जीवनी – Bhaskaracharya Biography in Hindi

BHASKARACHARYA BIOGRAPHY IN HINDI - प्राचीन भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य की जीवनी

प्राचीन भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिष विज्ञानी भास्कर (BHASKARA ) अथवा भास्कराचार्य दुनियाँ के प्रख्यात खगोलशास्त्री माने जाते हैं। कुछ तथ्यों से यह प्रतीत होता है की न्यूटन से पहले भारत के इस मनीषी को गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान था।

एक महान खगोलशास्त्री के रूप में भास्कर को पूरे विश्व में याद किया जाता है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भास्कर ज्योतिष विज्ञानी, खगोलशास्त्री और बीजगणित के प्रकांड विद्वान थे।

भास्कराचार्यने अपनी ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि में गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को बड़े ही सरल व् सुबोध तरिके से बताया है। आपने भास्कर उपग्रह को नाम जरूर सुने होंगे।

BHASKARACHARYA BIOGRAPHY IN HINDI - प्राचीन भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य की जीवनी
BHASKARACHARYA BIOGRAPHY IN HINDI – प्राचीन भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य की जीवनी

भारत सरकार ने उन्हें सम्मान देने के लिए उनके नाम पर भास्कर नामक उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था। आज हम भास्कराचार्य का जीवन परिचय में उनके जीवन से जुड़ी कई रोचक जानकारी साझा करेंगे।

भास्करचार्य की जीवनी – Bhaskaracharya Biography in Hindi –

महान खगोलशास्त्री भास्कराचार्य के जीवन से जुड़ी हुई कुछ ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके जीवन के बारे में जो कुछ भी जानकारी मिलती है उनके पुस्तक से वर्णित श्लोकों से ही अनुमान  लगाया जाता है।

महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री भास्कराचार्य का जन्म आज से करीब एक हजार वर्ष पहले सन 1114 ईस्वी में माना जाता है। भास्कराचार्य का जन्म स्थान दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के वर्तमान बीजापुर जिला में माना जाता है।

महान गणितज्ञ भास्कर के पिता का नाम महेश्वर था। भास्कराचार्य को दो संतान थी उनकी बेटी की नाम लीलावती तथा वेटे का नाम लोकसमुन्द्र था। आगे चलकर उनके वेटे लोकसमुन्द्र ने उनके काम को आगे बढ़ाया।

भास्कराचार्य की शिक्षा

उनके पिता महेश्वर वेद, गणित, ज्योतिष, आदि के विद्वान आदमी थे। वे अपना प्रेरणा स्रोत अपने पिता को मानते थे। क्योंकि उन्होंने अपने पिता से ही गणित, खगोलशास्त्र के अलावा ज्योतिष विधा का ज्ञान प्राप्त किया।

वैधशाला के प्रमुख

मध्यकालीन भारतवर्ष के प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय की जीवनी से पता चलता है की वे उज्जैन वैधशाला के अध्यक्ष  रहे। इस पद पर उनके पूर्ववर्तियों में प्रख्यात भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त और वराहमिहिर दोनों आसीन थे।

जहाँ रहकर उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के कार्य को आगे बढ़ाया। वे अपना गुरु ब्रह्मगुप्त (Brahmagupta ) को मानते थे। भास्कर प्रथम भारत के 7वीं सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे जबकि भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय मध्यकालीन भारत के महान गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे।

न्यूटन से पहले था गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान

भास्कराचार्य के लिखित शलोकों और कुछ तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है। सर आइजक न्यूटन से पहले भास्कराचार्य को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे मे पता था।

क्योंकि न्यूटन के जन्म से करीव 500 साल पहले ही भास्कराचार्य ने अपनी पुस्तक में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का जिक्र किया है। उनके लिखित ग्रंथ सिद्धान्त शिरोमणि में ग्रहों की स्थिति के साथ-साथ ब्रह्मांड विज्ञान के बारे में विस्तृत विवरण मिलता है।

भास्कर से जुड़ी कहानी

महान ज्योतिसाचार्य भास्कर के जीवन से जुड़ी हुई एक दिलचस्प कहानी प्रचलित है। उन्हें एक लीलावती नाम की कन्या थी। जब लीलावती शादी के योग्य हुई तब उनके लिए वर ढूंढा गया।

गणना के हिसाव से शादी की तिथि निर्धारित की गयी। शादी गणना के हिसाव से एक निश्चित समय पर होनी थी। शादी तय समय पर हो इसके लिए समय का ठीक ठीक अनुमान लगाने के लिए उन्होंने जल घड़ी बनाये।

जल धड़ी देखने में सुंदर लग रही थी। उनकी बेटी जल घड़ी को निहार रही थी तभी उनके आभूषण का एक टुकड़ा उस जल धड़ी में गिर गया। उन्होंने इस बात को भय के कारण अपने पिता को नहीं बतायी।

दूसरे दिन जल धड़ी द्वारा निर्धारित समय के अनुसार लीलावती की शादी हो गई। शादी के कुछ दिन बाद ही लीलावती के पति की मृत्यु हो गयी।कहते हैं की महान ज्योतिषज्ञानी भास्कर को पहले से ही किसी अनहोनी का डर थ।

इस अनहोनी को टालने के लिए वे अपने बेटी की शादी एक निश्चित समय पर करना चाहते थे। समय के गणना में किसी तरह का भूल न हो इसके लिए उन्होंने जल धड़ी को प्रवंध किया था। ताकि समय की गणना में तिल भर भी चूक का गुंजाइस नहीं रहे।

लेकिन वे इस बात से अनजान थे की घड़ी खराब हो चुकी है। गणना गलत होने और अनहोनी का दोषी उन्होंने खुद को माना। उन्होंने अपना अनुसंधान जारी रखा और बाद में जाकर वे अपने ज्ञान के बल पर विश्व प्रसिद्ध हो गये।

भास्कर द्वारा रचित ग्रंथ

भास्कर को ज्योतिषशास्त्र, खगोलशास्त्र के साथ गणित का भी बृहद ज्ञान था। उन्होंने अपने ज्ञान को लिपिबद्ध किया। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की। उनके द्वारा लिखित पुस्तक निम्नलिखित हैं।

‘सिद्धांत शिरोमणि’ – भास्कर ने अपनी किताब ‘सिद्धांत शिरोमणि’ में गणित के विषय में चर्चा की ही। उनकी यह किताब बीजगणित से संबंधित है। इस पुस्तक में चार खंड हैं जिसके एक खंड उन्होंने अपनी बेटी लीलावती के नाम से जोड़ा है। बाकी तीन खंड बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय से संबंधित हैं।

‘करण कौतृहल’ – उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘करण कौतृहल’ को भी काफी सराहा गया। कहते हैं की आज भी पंचांग बनाने के लिए ‘करण कौतृहल’ का प्रयोग किया जाता है।

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भास्कराचार्य की मृत्यु

प्राचीन भारतीय गणितज्ञ भास्कर की मृत्यु 1185 ईस्वी के आसपास उज्जैन में माना जाता है। इन्होंने गणित के संख्या सिद्धांत पर काम करते हुए ब्रह्मगुप्त के शोध को आगे बढ़ाया।

बीजगणित, ज्यामिति और अंकगणित में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। गणित के क्षेत्र में भास्कराचार्य के काम ने उन्हें विश्व प्रसिद्धि बना दिया।

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