के.एस.कृष्णन की जीवनी | Biography of KS krishnan in Hindi

वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन की जीवनी – Biography of KS krishnan in Hindi (KSK)

वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन (K. S. Krishnan ) भारत के प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। इनका पूरा नाम कार्यमाणिवकम् श्रीनिवास कृष्णन् (Sir Kariamanickam Srinivasa Krishnan) था।

इन्हें KSK के नाम से भी बुलाया जाता था। भारत में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के विकास के क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय योगदान माना जाता है।

कहा जाता है की भारत के महान नॉवेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सी वी रमन को उनके शोध रमन प्रभाव की खोज में उनका भी सहयोग रहा।

उनके अध्ययन का प्रमुख विषय Solid State Physics को माना जाता है। भौतिक विज्ञान में अहम योगदान के लिए उन्हें कई देशी व बिदेशी सम्मान प्राप्त हुए। उनकी प्रतिभा का विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिक लोहा मानते थे।

के.एस.कृष्णन की जीवनी | BIOGRAPHY OF KS KRISHNAN IN HINDI
के.एस.कृष्णन | K. S. KRISHNAN IN HINDI

सन 1961 में इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया। इस लेख में वैज्ञानिक के एस कृष्णन (K. S. Krishnan) का जन्म, आरंभिक जीवन, शिक्षा दीक्षा, कैरीयर, सम्मान व पुरस्कार का उल्लेख किया गया है।

तो चलिए इस महान वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन की जीवनी(KS Krishnan ki jivani) विस्तार से जानते हैं।

वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन का जीवन परिचय – K. S. KRISHNAN BIOGRAPHY IN HINDI

जन्म व माता पिता

महान वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन का जन्म 4 दिसम्बर 1898 को तमिलनाडू में तिरुनलवेल्ली जिले के वातरप नाम के गाँव में हुआ था। बचपन से ही के.एस.कृष्णन साहब पढ़ने लिखने में अत्यंत ही कुशाग्र थे। घर में पढ़ाई का माहौल पहले से था।

उनके पिता भी संस्कृत और तमिल के विद्वान थे और शिक्षा के महत्व से भली भांति परिचित थे। बचपन से ही उनके दिमाग किसी खोज बिन में लगा रहता था। बड़े होकर वैज्ञानिक बनकर अनुसंधान करने की बचपन से ही उनके अंदर प्रबल इच्छा थी।

शिक्षा दीक्षा

डॉ. के. एस. कृष्णन् की आरंभिक शिक्षा गाँव के ही पास के स्कूल श्रीविलिपुत्तूर में हुई। ग्रामीण परिवेश में पढ़ते हुए उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से प्रथम श्रेणी से हाईस्कूल की परीक्षा पास की।

उसके बाद उनका दाखिल कॉलेज की पढ़ाई के लिए मदुरै स्थित अमेरिकन कॉलेज में हुई। इस कॉलेज में उन्होंने सन 1914 से 1916 तक पढ़ाई कर इंटर पास कीये। उसके बाद स्नातक के लिए वे क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास में प्रवेश ले लिया।

यहाँ उन्होंने अपना ग्रेजुएसन पूरा किया। ग्रेजुएसन करने के बाद वे मद्रास विश्वविद्यालय में एडमिसन लिया। मद्रास विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. तथा डी. एस-सी. की डिग्री हासिल की। डॉ कृष्णन

का भौतिक विज्ञान के अलावा साहित्य से भी गहरा लगाव था। आप तमिल, संस्कृत, अंग्रेजी के भी प्रसिद्ध जानकार थे। 

कैरियर 

जिस क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने भौतिकी में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसी कॉलेज में उन्होंने कुछ वर्षों तक डिमांस्ट्रेटर के पद पर रहे।

सन 1920 में वे भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सी. वी. रमन के साथ , कलकत्ता में ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ में काम करने लगे। उसके बाद वे 1928 में ढाका चले गए।

ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी के रीडर के रूप में वे 1928 से 1933 तक सेवा की। तत्पश्चात वे सन 1933 में वापस कलकत्ता आकार प्रगति संस्थान से जुड़ गए। उसके वाद में सन 1933 से 1942 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में सेवा देते रहे।

सन् 1942 में डॉ कृष्णन् की नियुक्ति इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय वे सन् 1947 तक अपनी सेवा दिए। 

उपलब्धियां – k. s. krishnan inventions

वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन ने अपने जीवन में कई कृतिमान स्थापित कीये। इस प्रकार उन्होंने कई महातपूर्ण पद को सुशोभित किया। 1947 में जब भारत आजादी प्राप्त की, तब भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय अनुसंधानशाला के डायरेक्टर बनाये गए।

डायरेक्टर के पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी के साथ-साथ अनुसंधान में भी लगे रहे। सन 1948 में उन्हें ‘नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी’ नई दिल्ली के प्रथम निदेशक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

वे सन 1949 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष बने। साथ ही वे 1947 से 1961 तक परमाणु शक्ति आयोग के सदस्य भी रहे। इसके आलवा के.एस.कृष्णन साहब राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान तथा परमाणु विज्ञान अनुसंधान के अध्यक्ष पद पर भी विराजमान रहे।

डॉ कृष्णन् का अंतरराष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष 1957-58 के कार्यक्रम में अहम योगदान रहा। वे सन 1955 से 1957 तक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संघ परिषद् के उपाध्यक्ष पद को सुशोभित किया।

योगदान (contribution of k s krishnan)

डॉ कृष्णन् का मुख्य कार्यक्षेत्र भौतिक विज्ञान में Solid State Physics से सम्बद्ध था। इनके अनुसंधान-कार्य से ठोस अवस्था भौतिकी की आधारशिला मजबूत हुई। अणुओं की आंतरिक विशेषताओं पर कीये गए उनके शोध काफी सराहनीय रहे।

उन्होंने विश्व को पहली बार अणुओं की आंतरिक विशेषताओं से अवगत कराया। कहा जाता है की सी वी रमन जब रमन प्रभाव की खोज कर रहे थे जिनके लिए उन्हें नॉवेल पुरस्कार मिला। इस कार्य में वैज्ञानिक के.एस.कृष्णन से उन्हें काफी सहयोग मिला।

उन्होंने अणुओं की संरचना पर अनुसंधान किया जो एक जटिल कार्य माना जाता है। उनके महत्वपूर्ण कार्यों में प्रकाश के विकिरण और चुंबकत्व के माप पर उनका शोध माना जाता है।

इसके साथ ही उन्होंने प्रकाशीय प्रभावों और चुंबकीय प्रभावों पर भी अपना अहम अनुसंधान किया। डॉ. के. एस. कृष्णन् द्वारा भौतिक विज्ञान में कीये गए अनुसंधान को विश्व भर में सराहा गया।

उसको अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने उनकी शोध को मान्यता प्रदान की। लॉर्ड रदर फोर्ड तथा सर विलियम बेग ने उन्हें लंदन आमंत्रित किया। यह डॉ. के. एस. कृष्णन् के साथ-साथ पूरे देश के लिए गर्व की बात थी।

सम्मान व पुरस्कार

वैज्ञानिक किसी खास देश और सीमा से बंधकर नहीं रह जाते है। उनकी खोज विश्व कल्याण के लिए होती है। डॉ. कृष्णन् भी ऐसे ही वैज्ञानिक थे।  भौतिक विज्ञान में अमूल्य योगदान के लिए उन्हें देश विदेश से कई सम्मान और पुरस्कार प्रदान कीये गए।

भारत सरकार ने सन 1954 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से अलंकृत किया। उन्हें वैज्ञानिक में अमूल्य शोध के लिए सन 1957 में डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर स्मृति पुरस्कार प्राप्त हुआ।

ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सन् 1946 में इंगलेंड के सबसे बड़े सम्मान ‘सर’ (नाइटहुड) की उपाधि प्रदान की। उन्हें सन 1937 में लीज विश्वविद्यालय पदक प्रदान किया गया।

सन 1941 में वैज्ञानिक डॉ. कृष्णन् को कृष्ण राजेंद्र जुबली स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया। देश हेतु गौरवपूर्ण वैज्ञानिक कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय प्रोफेसर के सम्मान से सम्मानित किया।

देश की राजधानी दिल्ली में उनके सम्मान में एक पथ का नाम रखा गया है। जो dr k s krishnan marg new delhi के नाम से जाना जाता है।

निधन

डॉ. के. एस. कृष्णन् का 14 जून 1961 को अचानक हृदय गति रुकने से निधन हो गया। डॉ. के. एस. कृष्णन् भारत के महान् वैज्ञानिक कहलाये। अपने उत्कृष्ट कार्यों और अनुसंधान के द्वारा उन्होंने देश का गौरव बढ़ाया।

उन्होंने देश के नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके आकस्मिक निधन से भारत ने एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक और मार्गदर्शक को खो दिया। लेकिन उनके योगदान को आने वाली पीढ़ी हमेशा याद रखेगी।  


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