बी.पी. पॉल (B.P. PAL) का नाम भारत के जाने माने कृषि वैज्ञानिक के रूप में लिया जाता है। डॉ. पाल को जिनका पूरा नाम बेंजामिन पियरी पॉल (Benjamin Peary Pal) था। गेहूँ पर शोध कार्य कार्य करने के लिए उन्हें सदा याद किया जायेगा।
50-60 के दशक में एक तरफ देश में खाध्य अनाज की कमी थी। दूसरी तरफ रस्ट रोग के चपेट में आकार हजारों एकड़ गेहूं की फसल बर्बाद हो जाते हैं।
इस विषम परिस्थित में जाने-माने कृषि वैज्ञानिक बी.पी. पॉल ने अपने अनुसंधान के द्वारा रस्ट रोग से लड़ने में सक्षम गेहूं की नई किस्म का विकास किया। उनके द्वारा विकसित गेहूँ की किस्म तीन तरह के रस्ट रोग से लड़ने में सक्षम साबित हुई।
इसका परिणाम हुआ की गेहूं की पैदावार में अपार वृद्धि हुई। इस सफलता के कारण उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली और उनका नाम सारे विश्व में फैल गया। आइये जानते हैं Biography of Benjamin peary Pal विस्तार से –
बेंजामिन पियरी पॉल की जीवनी – Biography of Benjamin Peary Pal in Hindi
बी.पी. पॉल का जन्म 26 मई 1906 को पंजाब प्रांत के मुकुन्दपुर में हुआ था। बचपन से ही इनके अंदर पेड़-पौधों के बारे में जानने की गहरी रुचि थी। इनके पिता एक डॉक्टर थे। बी.पी. पॉल का अधिकांश बचपन के समय वर्मा में बीता।
वहीं पर उनकी अधिकांश शिक्षा पूरी हुई। सन 1929 में इंगलेंड चले गये। इंगलेंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय विश्वविध्यालय में वे गेहूँ पर शोध कार्य करने लगे। लगातार कई वर्षों तक अथक परिश्रम के बाद उन्हें पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त हुई।
कैरियर
पी-एच.डी प्राप्त करने के बाद वे स्वदेश वापस आ गये। यहाँ वे इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में में उनकी नियुक्ति हो गई। जहां पर वे अनवरत अपने शोध कार्य में लगे रहे।
सन् 1965 में बी.पी. पॉल साहब “इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च” के डायरेक्टर जनरल के पद पर नियुक्त हुए। इस पद पर रहते हुए इन्होंने भारत में कृषि विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये।
बी.पी. पॉल का योगदान
उस दौर में भारत में कृषि विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के साधन सीमित थे। हजारों एकड़ गेहूँ की फसल रस्ट नामक पौधे की विमारी से ग्रसित होकर नष्ट हो जाते थे। कृषि विज्ञानी डॉ. पॉल ने एक ऐसे गेहूँ के नए किस्म का विकास किया।
जिसमें इस रोग से लड़ने की शक्ति थी। इन्होंने गेहूं की नई किस्म एन.पी. 700 और एन.पी. 800 का विकास किया। बाद में उन्होंने कठिन परिश्रम के बाद गेहूँ की 801 शृंखला वाली एक और नई किस्म विकसित की।
इसके अतिरिक्त पॉल साहब ने गुलाबों के फूल के ऊपर भी कई महत्वपूर्ण शोध किये। अपने अनुसंधान द्वारा इन्होंने गुलाबों की ढेर सारी किस्मों का विकास किया। कहते हैं की भारत में हरित-क्रांति का आरम्भ केवल इन्हीं की सफल योजनाओं के संभव हुआ।
सम्मान व पुरस्कार
वनस्पति विज्ञान में अहम योगदान के लिए डॉ. पॉल को कई सम्मान व पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन 1972 में उन्हें रॉयल सोसाइटी लंदन के द्वारा अपने फ़ेलो मनोनीत किया गया।
उन्हें बीरबल साहनी पदक रफी, अहमद किदवई पुरस्कार और रामानुजन पदक से सम्मानित किया गया।
उपसंहार
उन्होंने अपने अनुसंधान के द्वारा कई पुस्तको की रचनायें की। उन्होंने गुलाब के ऊपर अनुसंधन में ‘द रोज इन इंडिया’ के नाम पुस्तक लिखी। डॉ. पॉल द्वारा गेहूँ की नई किस्मों के विकास के लिए उन्हें सदैव ही याद रखेगा।
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