दौलत सिंह कोठारी | Daulat Singh Kothari Biography in Hindi

दौलत सिंह कोठारी | DAULAT SINGH KOTHARI BIOGRAPHY IN HINDI
दौलत सिंह कोठारी | DAULAT SINGH KOTHARI BIOGRAPHY IN HINDI

वैज्ञानिक डी. एस. कोठारी का पूरा नाम दौलत सिंह कोठारी था। श्री दौलत सिंह कोठारी भारत के महान रक्षा वैज्ञानिक हैं। भारत में रक्षा विज्ञान केंद्र की स्थापना का श्रेय दौलत सिंह कोठारी को ही जाता है।

उन्ही के अहम प्रयास के कारण आज इस केंद्र पर रक्षा विज्ञान से जुड़े नित नए-नए अनुसंधान हो रहे रहे है। उन्हें प्रो. डी.एस. कोठारी भारत के उस चुनिंदा वैज्ञानिकों में से थे।

जिन्हें भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की विज्ञान नीति में स्थान मिला था। इस सूची में होमी भाभा, डॉ. मेघनाथ साहा, सी.वी. रमन के साथ डॉ. डी.एस.कोठारी के भी सम्मिलित थे।

दौलत सिंह कोठारी | DAULAT SINGH KOTHARI BIOGRAPHY IN HINDI
दौलत सिंह कोठारी | DAULAT SINGH KOTHARI

उन्हें भारत सरकार में रक्षा मंत्री के प्रथम वैज्ञानिक सलाहकार होने का गौरव प्राप्त है। वैज्ञानिक दौलत सिंह कोठारी केवल वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि महान शिक्षाविद भी थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनके अहम योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

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प्रख्यात वैज्ञानिक दौलत सिंह कोठारी जीवनी -Daulat Singh Kothari Biography in Hindi

प्रारम्भिक जीवन

महान वैज्ञानिक डीएस कोठारी का जन्म झीलों के शहर कहे जाने वाले राजस्थान के उदयपुर में हुआ था। सन 6 जुलाई 1906 को एक मध्यमवर्गीय जैन परिवार में पैदा हुए डीएस कोठारी के पिता का नाम श्री फतेह लाल कोठारी था।

कोठारी जी के माता जी का नाम लहर बाई थी। उनके पिता पेशे से एक शिक्षक थे तथा प्राइमरी स्कूल में अध्यापन का कार्य करते थे। जब कोठारी साहब की उम्र महज 11 साल की थी तभी उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया।

पिता के निधन के बाद कोठारी साहब की लालन पालन की सारी जिम्मेवारी उनकी माँ पर आ गई।

शिक्षा दीक्षा

उनकी माँ ने डी.एस. कोठारी को पढ़ने के लिए इंदौर भेज दिया। इस प्रकार कोठारी जी की प्रारम्भिक शिक्षा मध्य प्रदेश के इंदौर से हुई। इंदौर के महाराजा शिवाजीराव हाई स्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की।

हाई स्कूल पास करने के बाद बाद वे वापस अपने शहर उदयपुर आ गए। उदयपुर में उन्होंने सन 1924 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इंटरमीडिएट परीक्षा में उन्होंने पूरे राजपूताना बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

कई विषयों में वे अति विशिष्टि अंक हासिल कीये। इस प्रकार अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बल पर वे छात्रवृत्ति पाने में सफल हुए। फलतः छात्रवृत्ति के वल पर वे आगे की पढ़ाई के लिए प्रयागराज चले गए।

वहाँ उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.एससी और भौतिक विज्ञान में एम. एससी तक की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उन्होंने महान भौतिकविज्ञानी मेघनाथ साहा से शिक्षा प्राप्त कीये।

पारिवारिक जीवन

डॉ कोठारी जी के धर्म पत्नी का नाम श्रीमती सुजान थी। उनके तीन पुत्र हैं। उनके बड़े पुत्र का नाम प्रोफेसर लक्ष्मण सिंह कोठारी है जो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं।

उच्च शिक्षा के लिए इंगलेंड रवाना

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में पोस्ट ग्रैजूइट करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए। लंदन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने अपना शोध शुरू किया।

उन्होंने लंदन में नाभकीय भौतिक विज्ञान के पिता कहे जाने वाले लॉर्ड अर्न्स्ट रदरफोर्ड के मार्गदर्शन में पी एच डी (डॉक्टोरेट) की उपाधि हासिल की।

कैरियर

डॉक्टोरेट करने के बाद वे अपने देश भारत लौट आए। यहाँ आकार वे दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपने कैरियर की शरुआत की। प्रो कोठारी 1934 से लेकर 1961 तक दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।

साथ ही जब देश आजाद हुआ तब 1948 में भारत सरकार ने डॉ. कोठारी को प्रतिरक्षा मंत्रालय में प्रतिरक्षा-विज्ञान-संगठन का निदेशक बनाया।

इसके अलावा डॉ कोठारी भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में काम किया। प्रो कोठारी ने नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुलपति के पद को भी सुशोभित किया।

रक्षा क्षेत्र में योगदान

डॉ कोठारी रक्षा मंत्रालय में प्रतिरक्षा विज्ञान संगठन के निडीशक और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर रहते हुए कई उल्लेखनीय कार्य कीये। उन्होंने देश के प्रतिरक्षा वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों का पुनर्गठीत करने का काम किया।

रक्षा विज्ञान से जुड़ी कई लैब की स्थापना की। इसका फायदा हुआ की रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में भारत में अनुसंधान-कार्य तेजी से होने लगा। उनके निर्देशन में शस्त्र-विज्ञान, वैमानिकी, इलेक्ट्रॉनिकी, धातुकर्म, मानव और मशीनों का दुर्घटनाग्रस्त होना,

यहाँ तक की रेगिस्तान को हरा बनाना जैसे कई क्षेत्रों में काम किया गया। इस दौरान डॉ. कोठारी के मार्गदर्शन में भारत ने रक्षा विज्ञान से जुडे अनुसंधान-कार्य में तेजी से अहम प्रगति की। उनके द्वारा स्थापित रक्षा संस्थान के कुछ प्रमुख नाम हैं ; –

  • सेंटर फॉर फायर रिसर्च दिल्ली,
  • साइंटिफिक इवेलुएशन ग्रुप दिल्ली,
  • डिफेंन्स फूड रिसर्च लेबोरेट्री मैसूर,
  • सॉलिड स्टेट फिजिक्स लेबोरेट्री दिल्ली,
  • इंडियन नवल फिजिकल लेबोरेट्री कोच्ची,
  • टेक्निकल बैलिस्टिक रिसर्च लैबोरेट्री, चंडीगढ़
  • नवल कैमिकल एंड मेटैलर्जिकल लेबोरेट्री मुंबई,
  • डिफेन्स इलेक्ट्रॉनिक्स एंड रिसर्च लेबोरेट्री हैदराबाद,
  • डाइरेक्टोरेट ऑफ साइकॉलाजिकल रिसर्च नई दिल्ली,
  • डिफेन्स इंस्टीच्यूट ऑफ फिजिओलॉजी एंड एलॉयड साइंस चेन्नई,

शिक्षा के प्रसार में डॉ कोठारी का योगदान

आपको विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। इस पद पर आप सन 1961 में आसीन हुये तथा 1973 तक रहे।

करीव 12 वर्षों तक इस पद पर रहते हुए अनेक विश्वविद्यालयों की स्थापना के साथ शिक्षा के विकास में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये। आप मातृभाषा के पक्षधर थे। डॉ कोठारी का मानना था की देश दुनियाँ में क्या चल रहा है।

क्या नई चीजें विकसित हो रही है उसे जानने के लिए अंग्रेजी जरूरी है। लेकिन मातृभाषा के द्वारा इस ज्ञान को जनसाधारण तक आसानी से पहुचाया जा सकता है। इस कारण हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषा में विज्ञान की शिक्षा अनिवार्य है।

भारत की शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक और स्तरीय बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के वे प्रथम अध्यक्ष भी रहे। एनसीईआरटी की स्थापना में डॉ कोठारी की अहम भूमिका मानी जाती है।

उनके अन्य योगदान

डॉ कोठारी का तारा भौतिकी के क्षेत्र में भी अहम योगदान रहा। उन्होंने सांख्यिकीय थर्मोडायनामिक्स और व्हाइट ड्वार्फ स्टार्स के सिद्धांत पर उल्लेखनीय अनुसंधान के लिए जाने जाते हैं।

इस अनुसंधान के कारण उन्हें पूरे विश्व में पहचान मिली। उन्होंने राजस्थान के जोधपुर में रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए शोध हेतु प्रयोगशाला की स्थापना की।

इसके साथ ही उनके निर्देशन में देश के अंदर प्रतिरक्षा विज्ञान, वातावरण-शरीर-क्रिया विज्ञान, धातुकर्म, मानव और मशीनों का दुर्घटनाग्रस्त होना, इलेक्ट्रॉनिकी, भू-स्थायित्व, खाद्य-संरक्षण, और गैस टरबाइनों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य हुए।

यहाँ तक की उन्होंने दैनिक काम में आने वाली डेजर्ट कूलर के डिजाइन पर भी शोध किया।

समान व पुरस्कार

रक्षा विज्ञान सहित देश के विकास के कई अन्य क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया। देश के कई विश्व विद्यालय में उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया।

भारत सरकार ने डॉ कोठारी को सन 1962 में पद्म भूषण तथा सन 1973 में भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से अलंकृत किया। सन 1973 में ही डॉ कोठारी को इंडियन नेशनल साइंस अकादमी का अध्यक्ष चुना गया था।

सन 1966 में उन्हें शान्तिस्वरूप भटनागर पूरस्कार और सन 1978 में मेघनाथ साहा पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

शिक्षा के क्षेत्र में डॉ कोठारी के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें नेशनल फेडरेशन ऑफ यूनेस्को एसोसिएशन की ओर से पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उन्हें भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम हिदायतुल्ला के द्वारा प्रदान किया गया था।

उन्होंने दिल्ली विश्व विधायल में 25 वर्षों तक सेवा की। प्रो कोठारी के सम्मान में दिल्ली विश्वविद्यालय में डी.एस. कोठारी रिसर्च केंद्र (DS Kothari Research Centre )की स्थापना की गई है। भारत सरकार ने उनके सम्मान में सन 2011 में डाक टिकट जारी किया।

डॉ.कोठारी द्वारा लिखित कुछ प्रमुख पुस्तकें

  • ऐटम एंड सेल्फ,
  • नॉलेज एंड विज्डम,
  • विज्ञान और मानवता’
  • थ्योरी ऑफ ह्वाइट ड्वार्थ स्टार्स,
  • शिक्षा विज्ञान और मानवीय मूल्य,
  • न्यूक्लियर एक्सप्लोसिव्स एंड देयर इफेक्ट्स,
  • न्यूमरस पेपर्स ऑन स्टैटिस्टिकल थमोंडायनेमिक्स,

आप शांति के हमेशा से पक्षधर रहे हैं। आपकी पुस्तक ‘न्यूक्लियर एक्सप्लोसिव्स एंड देयर इफेक्ट्स, से यह प्रतीत होता है की आप परमाणु-परीक्षणों और उनके प्रभाव को लेकर अत्यंत ही गंभीर थे।

उनकी यह प्रसिद्ध पुस्तक मानी जाती है जिसका अनुवाद जापानी और जर्मन भाषाओं में भी किया गया। 

सिविल सेवा परीक्षा में योगदान

उनके प्रयास का कारण ही आज लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित सिविल सेवा परीक्षा में हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है।

भारत सरकार ने 1974 में देश के सबसे बड़े परीक्षा सिविल सेवा परीक्षा की रिव्यू के लिए प्रो. डी.एस कोठारी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की।

उन्होंने अपने रिपोर्ट के द्वारा इन परीक्षा को अंग्रेजी सहित भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं के माध्यम से कराने का प्रस्ताव दिया। साथ ही कोठारी आयोग की सिफारिशों में अभ्यर्थियों की उम्र सीमा बढ़ाये जाने की बात कही।

इस सिफारिशों के लागू होने से एक तो अभ्यर्थियों को उम्र सीमा बढ़ी साथ ही उन्हें अंग्रेजी के अलावा भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी भाषाओं में लिखने की छूट मिल गई।

इससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में रहने वाले पिछड़े और वंचित अभ्यर्थी को भी इस परीक्षा में शामिल होने का अवसर मिला। इसका परिणाम हुआ की हिन्दी सहित दूसरी भारतीय भाषाओं के माध्यम वाले अभ्यर्थी की संख्या बढ़ने लगी।

भारत के दूर-दराज और ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभाशाली अभ्यर्थी को भी सिविल सेवा में आने का मौका मिला।

डॉ कोठारी का निधन

महान वैज्ञानिक दौलत सिंह कोठारी का 21 फरवरी 1993 को हृदयगति रुक जाने से जयपुर में देहावसान हो गया। भारत के प्रतिरक्षा के क्षेत्रों में अनुसंधान-कार्यों के में अपना बहुमूल्य योगदान देते हुए भी आप हमेशा से ही शांति के प्रबल समर्थक रहे।

यह बात आपके द्वारा रचित किताब ‘परमाणु विस्फोट और उनके प्रभाव’ से पता चलता है। आज वो हमारे बीच नहीं रहे लेकिन राष्ट्रनिर्माण के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षक, वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री के रूप में डॉ. कोठारी को सदैव याद किया जायेगा।

हमें आशा है की दौलत सिंह कोठारी की जीवनी (DAULAT SINGH KOTHARI BIOGRAPHY IN HINDI ) से संबंधित जानकारी अच्छी लगी होगी।


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