महान भारतीय वैज्ञानिक शम्भूनाथ डे ने अपने शोध के द्वारा हैजे अर्थात कॉलेरा से होने वाली मृत्यु का कारण ढूंढ निकाला। शम्भुनाथ डे (Shambhu Nath De) की गिनती भारत के महान वैज्ञानिक में की जाती है।
हैजे फैलाने वाले जहरीले तत्व की खोज कर उन्होंने लाखों लोगों को मौत के मुँह में जाने से बचाया। आज से 100 साल पहले यह बीमारी जानलेवा समझी जाती थी। देखते ही देखते यह महामारी का रूप धरण कर लेती थी तथा गाँव के गाँव इस विमारी के चपेट में आ जाते थे।
यह एक भयंकर छूत का रोग समझा जाता था। हैजा से शरीर के कई अंग प्रभावित हो जाते थे। शरीर में तरल पदार्थ की कमी से अनगिनत लोगों की जान चली जाती थी। खासकर उष्ण प्रदेशों में हैजे का व्यापक असर देखने को मिलता था।
उस बक्त इस बीमारी का कोई कारगर इलाज भी उपलब्ध नहीं था। रॉबर्ट कॉख द्वारा हैजा के जीवाणु की खोज के बाद शम्भुनाथ डे ने हैजे के लिए जिम्मेवार जहरीले तत्व की खोज की।
कोलकाता के बोस संस्थान में शम्भुनाथ डे के अथक प्रयास के कारण हैजे के असली कारण का पता चला। जिससे हैजा की रोकथाम में मदद मिली। इस महान वैज्ञानिक ने हैजा का इलाज खोजा लेकिन अपने ही देश में उन्हें ‘गुमनामी‘ मिली।
शम्भुनाथ डे की जीवनी – Shambhu Nath De Biography in Hindi
भारतीय वैज्ञानिक शम्भुनाथ डे का जन्म 1 फरवरी 1915 ईस्वी में पश्चिमी बंगाल में कलकत्ता के पास हुगली में हुआ था। उनके पिता का नाम दशरथी डे तथा माता का नाम छत्तेश्वरी थी। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव के ही स्कूल में ही हुई थी।
बचपन से ही शम्भुनाथ डे पढ़ने में बड़े ही तेज थे। हाईस्कूल पास करने के बाद उन्होंने कलकत्ता से चिकित्सा विज्ञान में डिग्री प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने अपने प्रतिभा के बल पर छात्रवृत्ति भी हासिल की।
उनके प्रतिभा से प्रभावित होकर एक प्रोफेसर ने डे साहब की काफी मदद की। इस प्रकार वे उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए। वहाँ उन्होंने पी-एच.डी. की डिग्री हासिल की। लंदन में पैथोलोजिस्ट सर रॉय कैमरोन के निर्देशन में उन्होंने काम किया।
हालांकि इस दौरण उन्हें कई समस्यायों का सामना भी करना पड़ा। लंदन में डे साहब आधिकारिक तौर पर दिल की बीमारी से संबंधित विषय पर अपना अनुसंधान कर रहे थे।
इसी दौरान उनके मन में हैजा के समाधान के बारे में ख्याल आया। वे जी-जान से हैजे के कारण के समाधान को खोजने में जुट गये। सन 1949 में भारत वापस आ गये।
वतन वापसी के बाद वे कलकत्ता मेडिकल कालेज में पैथोलॉजी विभाग के निदेशक नियुक्त किए गए। यहाँ पर भी उन्होंने हैजे पर अपना अनुसंधान जारी रखा। इस प्रकार कड़ी मेहनत के बाद उन्हें हैजे के कारण के बारे में पता लगा लिया।
शंभुनाथ डे की खोज (Shambhu Nath De in Hindi )
सन 1884 में रॉबर्ट कॉख ने हैजा के रोगाणु की खोज की थी। इसके 75 साल बाद शम्भुनाथ डे ने रॉबर्ट कॉख के शोध को पूरी तरह अध्ययन किया। उन्होंने हैजे के जीवाणु पर नए सिरे से अपना शोध शुरू कर दिया।
अपने अनुसंधान के द्वारा उन्होंने इस बात का पता लगाया की हैजे में मौत का कारण हैजे के जीवाणु द्वारा शरीर में उत्पन्न किया गया टॉक्सिन होता है। विज्ञान की भाषा में इस टॉक्सिन को एक्सोटोक्सिन के नाम से जाना जाता है।
इस जहर के प्रभाव से रोगी के शरीर में तरल पदार्थ की कमी होने लगती है। रोगी का रक्त तरल पदार्थ की कमी के कारण गाढ़ा होने लगता है। इस प्रकार अंततः मरीज की मौत हो जाती है।
उनके इस खोज के बाद ही ऑरल डिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) के निर्माण हुआ। इसके बाद अनगिनत हैजे के मरीजों की जान मुंह के माध्यम से तरल पदार्थ देकर बचानी शुरू हुई। जिसके द्वारा दुनिया भर में
सन् 1959 ईस्वी में इनकी खोज विश्व के प्रसिद्ध ‘नेचर'(nature)’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। उसके कुछ दिनों के बाद उनकी खोजों को स्वीकार कर लिया गया।
सन् 1959 ईस्वी में इनकी खोज विश्व के प्रसिद्ध ‘नेचर'(nature)’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। उसके कुछ दिनों के बाद उनकी खोजों को स्वीकार कर लिया गया। उन्होंने हैजा से प्रभावित अंग किडनी पर होने वाले असर का भी अध्ययन किया।
इस प्रकार वैज्ञानिकों ने हैजे के जहरीले तत्व के रासायनिक गुणों को समझने की कोशिस में लग गये। अंतोगत्वा हैजे पर काबू पाया जा सका।
शम्भूनाथ डे का योगदान
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में शंभुनाथ डे पेथोलॉजी विभाग के निदेशक रहे। उन्होंने अपने सतत शोध के द्वारा हैजा फैलाने वाले जहरीले तत्व की खोज की।
उस बक्त संसाधनों के अभाव के बावजूद भी डे साहब ने हैजा के जीवाणु द्वारा उत्पन्न होने वाले जानलेवा टॉक्सिन के बारे में खोज किया था। इस कारण आगे चलकर हैजे की चिकित्सा में मदद मिली।
तभी से हैजा जैसी बीमारी के निदान के वास्ते आवश्यक वैक्सीन के निर्माण के लिए पूरे विश्व में शोध होने लगा। अन्त में वैज्ञानिकों को हैजे के इलाज में सफलता प्राप्त हुई।
पुरस्कार व सम्मान
शम्भूनाथ डे ने हैजा का इलाज खोजा था लेकिन उन्हें अपने देश में ‘गुमनामी’ मिली थी। भारत के इस महान वैज्ञानिक जिस पहचान के हकदार थे उन्हें समय रहते नहीं मिल सकी।
शुरू में शम्भूनाथ डे के शोध को मान्यता नहीं मिली लेकिन बाद में उनके खोज को स्वीकार किया गया। तब जाकर पूरे विश्व में उन्हें पहचान प्राप्त हुई। उन्हें दुनियाँ के प्रसिद्ध पुरस्कार नॉवेल के लिए भी नामांकित किया गया था।
नॉवेल पुरस्कार के लिए उनका नामांकन महान वैज्ञानिक जोशुहा लेडरबर्ग के द्वारा किया गया। हालांकि उन्हें नॉवेल पुरस्कार नहीं मिल पाया। लेकिन नोबेल फाउंडेशन ने सन 1978 ईस्वी में उन्हें गेस्ट स्पीकर के रूप आमंत्रित किया था।
जहाँ उन्होंने अनगिनत वैज्ञानिकों के बीच अपने अनुसंधान के बारे में अपनी बात रखी। उनके निधन के बाद सन 1990 ईस्वी में करंट साइंस मेगजीन ने डे साहब के जीवन और शोध के ऊपर एक विशेष प्रति छापी थी।
शम्भूनाथ डे का निधन
महान वैज्ञानिक शम्भूनाथ डे का 70 वर्ष की अवस्था में 15 अप्रैल 1985 ईस्वी को निधन हो गया। उन्होंने सीमित संसाधनों के द्वारा अपने खोज को अंजाम दिया था।
शम्भुनाथ डे के प्रयास का परिणाम है की आज हैजे जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज संभव हो सका। आज अगर हैजे को एक सामान्य बीमारी समझी जाती है। इसमें शंभुनाथ डे की खोज का बहुत बड़ा हाथ है।
आज भले ही डे साहब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन साइंस जगत में इनके अहम योगदानों को हमेशा याद रखा जायेगा। आपको शम्भुनाथ डे की जीवनी (Shambhu Nath De Biography In Hindi) आपको जरूर अच्छी लगी होगी।
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