च्यवन ऋषि का जीवन परिचय | च्यवन ऋषि कौन थे (Chyavana rishi)

च्यवन ऋषि | CHYAVANA RISHI | CHYAVANA MAHARSHI IN HINDI
च्यवन ऋषि | CHYAVANA RISHI | CHYAVANA MAHARSHI IN HINDI

च्यवन ऋषि कौन थे : च्यवन ऋषि(chyavana rishi) प्राचीन भारत के महान आयुर्वेदाचार्य तथा ज्योतिषाचार्य कहे जाते हैं। वैदिक भारत के अश्‍विन कुमार, धन्वं‍तरि, सुश्रुत जैसे कई महान चिकित्सक हुए।

ऐसे ही आयुर्वेद के ज्ञाता के रूप में च्यावन ऋषि (Chyavana Maharshi) का नाम लिया जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार उन्होंने अपनी कठोर तपस्या से असीम तेज अर्जित कर लिया था।

इन्द्र के वज्र के प्रहार को भी खत्म करने के शक्ति उनमें निहित थी। उनकी शादी सुकन्या नामक राज कुमारी से हुई थी। कहा जाता है की अश्‍विन कुमार के निर्देशन में उन्होंने ने अति दुर्लभ जड़ी बूटी के संयोग से एक दिव्य औषधि की निर्माण किया था।

जिसके सेवन से वे फिर से जवान हा गए थे। आईए Chyavana rishi in hindi शीर्षक वाले इस लेख में महान ऋषि के जीवन के बारें में विस्तार से जानते हैं।

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च्यवन ऋषि - CHYAVANA RISHI | CHYAVANA MAHARSHI IN HINDI
च्यवन ऋषि CHYAVANA RISHI – CHYAVANA MAHARSHI IN HINDI

च्यवन ऋषि का जीवन परिचय –

च्यवन ऋषि का जन्म, गोत्र और वंशावली की बात की जाय तो उन्हें भृगु ऋषि का पुत्र माना जाता है। उनकी ऋषि की माँ का नाम पुलोमा था। एक कथा के अनुसार च्यवन का विवाह खम्भात की खाड़ी के महाराजा शर्याति की कन्या के साथ हुआ था।

च्यवन ऋषि के पत्नी का नाम सुकन्या थी। पौराणिक शस्त्रों के अनुसार च्यवन ऋषि के पुत्र का नाम अप्नुवान था।

च्यवन ऋषि की वंशावलीChyavana rishi Biography in Hindi

पूरा नाम च्यवन ऋषि
च्यवन ऋषि के पिता का नामभृगु ऋषि
माता का नाम पुलोमा
च्यवन ऋषि की पत्नी का नाम
संतान और्व
वंश-गोत्र भृगु वंश

च्यवन ऋषि की कहानी

इस महान ऋषि की जीवनी से जुड़ी कहानी अत्यंत ही रोचक है। इनकी माँ पौलमी दानवराज पुलोम की पुत्री थी। महाभारत शांतिपर्व के एक अध्याय में वर्णित है की पौलमी की सगाई पुलोम वंश के ही दंस के साथ निर्धारित थी।

लेकिन दानवराज पुलोम ने अपनी पुत्री पौलमी की शादी महर्षि भृगु के साथ कर दिया। इस बात से दंस बहुत क्रोधित हुआ। एक समय की बात है महर्षि भृगु आश्रम में नहीं थे। गर्भवती पौलमी अकेली आश्रम में मौजूद थी।

इन सभी बातों से अनभिज्ञ दंस ने मौका पाकर पौलमी का हरण की योजना बनाई। वह पौलमी को हरण कर अपने साथ जबरदस्ती ले जाने लगा। चूंकि पौलमी उस बक्त गर्भवती थी। फलतः विरोध और विलाप के कारण रास्ते में ही पौलमी का गर्भपात हो गया।

पौलमी का नवजात शिशु जमीन पर गिर गया। कहा जाता है की भूमि पर गिरने के कारण ही शिशु का नाम च्यवन (गिरा हुआ) रखा गया। अर्थात च्यवन का अर्थ गिरा हुआ से है। यही च्यवन आगे चलकर च्यवन ऋषि के नाम से भारतवर्ष के महान आयुर्वेदाचार्य हुए।

च्यवन ऋषि की कथा

सुकन्या च्यवन ऋषि की पत्नी थी। सुकन्या की कथा बहुत ही रोचक है। कहते हैं की प्राचीनकाल में भारतवर्ष में शर्याति नामक एक राजा थे। अपने न्याय प्रियता और कुशल प्रशासन के कारण जनता के बीच वे अत्यंत ही लोकप्रिय थे।

उनके संतान में इसका गहरा असर था। राज्य में चारों तरफ शांति और खुशहाली व्याप्त थी। एक दिन की बात है राजा सपरिवार वन विहार के लिए अपने राज्य के ही जंगल में निकले। भ्रमण के दौरान जब सभी एक स्थान पर विश्राम कर रहे थे।

उसी क्रम में राजा की पुत्री जिसका नाम सुकन्या थी, अपने सहेली के साथ पास स्थित एक टीले को देख घूमने निकल गई। उस टीले के पास पहुच कर वह बड़ा ही सुखद अनुभव कर रही थी।

तभी उनकी नजर एक ऐसे अद्भुत टीले पर जा पड़ी जहां से दिव्य प्रकाश की आभा निकल रही थी। कौतूहल बस वह टीले के और पास जाकर देखने लगी। टीले से निकलने वाली दिव्य प्रकाश सुकन्या को विस्मित कर रही थी।

उन्होंने उस दिव्य टीले का राज जानने के उद्देश्य से लकड़ी से उसमें कई छेद कर डाले। छेद होते ही उस मिट्टी के टीले में कंपन के साथ खून की धारा बहने लगी। यह देखकर सुकन्या और उनकी सहेली घबरा गई।

वह भागे-भागे अपने पिता के पास गई और उस घटना से उनको अवगत कराया। राजा शर्याति जब उस टीले के पास पहुंचे तो उनके होश उड़ गये। क्योंकि वे जानते थे की यह दिव्य टीला वास्तव में महर्षि च्यवन का शरीर है, जो यहाँ वर्षों से घोर तपस्या में रत हैं।

वर्षों तक एक ही स्थान पर समाधिसत रहने और आंधी-तूफान के प्रभाव से उनके शरीर पर दीमक-मिट्टी जम गया है। वर्षों से मिट्टी जमने से उनका शरीर छोटा टीला सा प्रतीत होता है। उनके शरीर पर लताएं और घास उग आई हैं। 

सुकन्या द्वारा च्यवन ऋषि को अंधा बनाना

उन्होंने अपनी पुत्री से कहा बेटी तुमसे बहुत बड़ा अनर्थ और पाप हो गया है। तुमने समाधि में रत इस ऋषि की आँखें फोड़ दी। यह खून उनके आँखों से ही निकल रहा है। यह सुनकर सुकन्या को बहुत दुख हुआ।

अनजाने में उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी। सुकन्या अपने गलती के लिए एक बहुत बड़ा फैसला कर डाला। उन्होंने अपने पिता से कहा की ऋषि मेरे कृत्य के कारण अंधे हुए हैं।

इस कारण वह जीवन भर पत्नी बनकर उनकी सेवा करूंगी। यही मेरे लिए अपनी गलती का प्रा‍यश्चित होगा। राजा ने कहा तुम युवा और राजकुमारी हो और वह ऋषि है। उनका शरीर भी वर्षों तप के कारण अत्यंत जर्जर व कृशकाय हो चुका है।

उनके साथ तुम्हारी शादी संभव नहीं है। इस प्रकार राजा अपनी पुत्री सुकन्या का बहुत समझाया लेकिन वे अपने फैसले पर अडिग रही। 

च्यवन ऋषि का सुकन्या से विवाह

इस प्रकार महर्षि च्यवन ऋषि का सुकन्या के साथ विवाह संपन हुआ। सुकन्या राजमहल छोड़कर अपने पति के साथ आश्रम में रहने लगी। वह एक पतिव्रता थी तथा जी-जान से अपने वृद्ध अंधे पति ऋषि च्यवन की सेवा करने लगी।

राजकुमारी सुकन्या की अद्भुत त्याग और बलिदान को देखकर देवतागण बहुत खुश हुए।

सुकन्या की परीक्षा

उन्होंने देवताओं के चिकित्सक अश्वनी कुमार को उनकी परीक्षा हेतु भेजा। सुकन्या ने आश्वनी कुमारों की बहुत सेवा की। सुकन्या की इस आयु में इतना बड़ा त्याग और पतिव्रता धर्म को देख कर अश्वनी कुमार बहुत प्रसन्न हुए।

वे अंधे च्यवन ऋषि को एक दिव्य सरोबर के पास ले गये और डुबकी लगाने को कहा। इस डुबकी के फलस्वरूप च्यवन ऋषि की आँखों की रोशनी वापस या गई। साथ ही अश्वनी कुमार ने इन्हें एक दिव्य औषधि का राज बताया।

‘च्यवन’ मुनि के नाम पर रखी गई औषधि

महर्षि च्यवन ऋषि ने उनके बताये अनुसार जड़ी-बुटियों के मिश्रण से उस दिव्य औषधि को तैयार कर उसका सेवन किया। इस औषधि के सेवन से चमत्कारिक परिणाम सामने आया।

कुछ ही महीने में च्यवन ऋषि का कायाकल्प हो गया और वे फिर से जवान हो गए। बाद में वह औषधि उन्ही के नाम पर ‘च्यवनप्राश‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इन्द्र के वज्र का सामना

इधर जब राजा शर्याति को च्यवन ऋषि की दृष्टि वापस आने तथा फिर से जबान होने की खवर मिली तब वे बहुत प्रसन्न हुये। इस खुशी में राजा ने च्यवन ऋषि के निर्देशन में यज्ञ करने का फैसला किया।

यज्ञ पूरी विधि-विधान के साथ शुरू हुआ। इस यज्ञ में सभी देवताओं सहित अश्‍वनीकुमारों का भी आह्वान किया गया। लेकिन देवराज इन्द्र को यह बात अच्छी नहीं लगी। इन्द्र ने यज्ञ में अश्‍वनीकुमार की भागीदारी को लेकर आपत्ति की।

लेकिन उन्होंने इन्द्र की बातों को अनसुना कर दिया। च्यवन ऋषि के इस बात से क्रोधित होकर इन्द्र ने ऋषि पर ही वज्र से प्रहार कर दिया। लेकिन ऋषि ने तपोबल के तेज से इन्द्र के वज्र को रोक दिया। अंतोगतबा इन्द्र को इस प्रतापी ऋषि की बात माननी पड़ी।

च्यवन ऋषि का आश्रम

च्यवन ऋषि आश्रम के बारें में कहा जाता है की च्यवन ऋषि का मुख्य आश्रम उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले के पास स्थित था। ऐसी मान्यता है की इनका आश्रम यहाँ से कुछ किलो मीटर की दूरी पर था। जहां अभी भी एक कुंड काफी प्रसिद्ध है। कहते हैं की उस कुंड में स्नान करने से कई तरह के बीमारी दूर हो जाती है।

F.A.Q

  1. Q च्यवन ऋषि का जन्म कब हुआ था?

    ऋषि च्यवन को भृगु ऋषि का पुत्र माना जाता है। कहते हैं की च्यवन ऋषि की माँ का नाम पुलोमा था।

  2. Q सुकन्या किसकी बेटी थी?

    सुकन्या खम्भात की खाड़ी के महाराजा शर्याति की बेटी थी।

  3. Q. च्यवन ऋषि का आश्रम कहाँ है?

    कहते हैं की च्यवन ऋषि का मुख्य आश्रम उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में स्थित था। इनका आश्रम मैनपुरी से करीब 20 किलो मीटर दूर औचा में स्थित माना जाता है।

आपको च्यवन ऋषि का जीवन परिचय शीर्षक वाली यह जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें।

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बाहरी कड़ियाँ(External links)

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