जीवक कौन था ?
Jivak in Hindi – जीवक की गिनती प्राचीन भारत के प्रसिद्ध वैद्य के रूप में की जाती है। जीवक भगवान महात्मा बुद्ध के समकालीन थे। भगवान बुद्ध के शिष्य ‘जीवक’ मगध सम्राट बिंबिसार का राजवैद्य था।
मगध के राजवैध के साथ-साथ जीवक, भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों के चिकित्सक भी थे। जीवक का पूरा नाम ‘जीवक कौमारभच्च‘ था। जीवक को कौमारभच्च‘ क्यों कहा जाता है, इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है की,
चूंकि जीवक बाल-रोग विशेषज्ञ भी थे इस कारण ही उन्हें ‘कोमारभच्च’ कहा जाता था। लेकिन कुछ विद्वान के अनुसार चूंकि जीवक का लालन पालन राज कुमार अभय ने किया था। इस कारण से उनका नाम जीवक कोमारभच्च पड़ा था।
सुदूर देशों से भी लोग उपचार हेतु जीवक के पास आते रहते थे। जीवक के आयुर्वेद के ज्ञान की प्रशंसा बौद्ध ग्रंथों में भी की गई है। मगध साम्राज्य के राजा बिंबिसार को भगन्दर की बीमारी उन्होंने ठीक की थी। फलतः उन्हें राज वैध का सम्मान प्राप्त हुआ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के अलावा जीवक शल्य चिकित्सा (ऑपरेशन) में भी निपुण थे। उनके द्वारा शल्य क्रिया का भी वर्णन पढ़ने को मिलता है। प्राचीन भारत के प्रसिद्ध शल्यविद आचार्य जीवक तक्षशिला विश्वविध्यालय से ज्ञान प्राप्त कीये थे।
जीवक के जीवन से जुड़ी कई घटना से यह पता चलता है कि जीवक को गहन औषधिय ज्ञान था। आइए जीवक का जीवन परिचय (Biography of Jivak in Hindi) में इस प्राचीन आयुर्वेदाचार्य के बारें मे विशेष रूप में जानते हैं।
महान आयुर्वेदाचार्य जीवक की जीवनी – Biography of Jivak in Hindi
जीवक का जन्म व प्रारंभिक जीवन
प्राचीन भारत के प्रसिद्ध वैद्य जीवक का जन्म आज से करीब 2500 ईस्वी ईसा पूर्व राजगृह में हुआ था। इनकी माताजी का नाम सालावती था। उनकी माता सालावती राजगृह की प्रसिद्ध गणिका थी।
जब जीवक का जन्म हुआ तब उसकी माता ने समाज के लोक-लज्जा से बचने के लिए उसे सड़क के किनारे कुड़े के ढेर पर छोड़ दिया। जब लोगों ने नवजात बच्चे को रोते देखा तब वहाँ पर भारी भीड़ जमा हो गई।
उसी बक्त राजगृह के राजकुमार अभय की सवारी वहाँ से गुजर रही थी। उन्होंने भीड़ का कारण जाना और बच्चे को पास जार देखा। बच्चे को देखकर राजकुमार अभय को दया आ गई।
इस प्रकार उन्होंने बालक जीवक उठबा कर राजमहल में मँगवा लिया। इस प्रकार राजमहल में राजकुमार अभय के निर्देशन में उसकी प्रारम्भिक शिक्षा और परवरिश हुई। राजकुमार अभय ने उनका नाम जीवक रखा।
एक दिन जीवक ने राजकुमार अभय से अपने माता पिता के बारें में जानना चाहा। पहले तो वे हिचकिचाए लेकिन सच्चाई को कब तक छुपाया जा सकता था। फलतः राजकुमार अभय ने बिना किसी सच को छुपाये सारी बातें उन्हें बता दी।
जब जीवक ने अपने जन्म से जुड़ी कहानी का पता चला तब उन्हें बहुत दुख हुआ। अपनी जन्म की सच्चाई जानकार वह जीना नहीं चाहता था। लेकिन राजकुमार अभय के समझाने से वह समझ गया।
गृह त्याग
उन्हें अब राजमहल में तनिक भी दिल नहीं लग रहा था। इस प्रकार एक दिन उन्होंने धर छोड़ने का निर्णय ले लिया। उन्होंने राजकुमार अभय के कहने पर तक्षशिला जाकर शिक्षा ग्रहण करने की बात मान ली।
फलतः एक दिन वे राजमहल से निकाल कर ज्ञानार्जन के लिए तक्षशिला पहुँच गए। उस बक्त तक्षशिला और नालंदा शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता था।
तक्षशिला में ज्ञानार्जन
उन्होंने तक्षशिला पहुंचकर कई वर्षों तक आयुर्वेद का गहन अध्ययन किया। करीब सात वर्षों तक तक्षशिला में रहकर जीवक ने आयुर्वेद में महारत हासिल कर ली। जब उनकी शिक्षा पूर्ण होने वाली थी तब उनके गुरु ने जीवक की परीक्षा लेना चाहा।
जीवक के ज्ञान की परीक्षा
जीवक के गुरु ने अपने पास बुलाकर कहा की – जीवक ! तक्षशिला के आसपास चारों तरफ घने जंगल हैं। वहाँ लाखों किस्म की वनस्पतियाँ मौजूद हैं। जाओ वहाँ जाकर उन वनस्पतियों का पूरे मनोयोग से अध्ययन करो।
अध्ययन के बाद जब तुम वापस आने लगोगे तब तुम मेरे लिए कुछ ऐसी वनस्पति ढूंढ कर लेते आना जिसमें कोई भी औषधीय गुण मौजूद ना हो।
जीवक ने गुरु के आज्ञा मानकर कई महीनों तक तक्षशिला के चारों तरफ के जंगलों में घूमकर वनस्पति का अध्ययन किया। अपना अनुसंधान पूरा करने के बाद जीवक वापस अपने गुरु के पास आए।
उन्होंने ने अपने गुरु को कहा गुरुदेव हमें इतने बड़े जंगल में ऐसा कोई भी वनस्पति नहीं मिला जिसमें कोई औषधीय गुण मौजूद नहीं हो। जीवक के जवाव और उनके ओषधीय ज्ञान से प्रभावित उनके गुरु अति प्रसन्न हुए।
उन्होंने कहा की जीवक तुम सही हो, इस संसार में ऐसी को भी वनस्पति नहीं है जिसमें चिकित्सीय गुण मौजूद ना हो। जाओ तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुई। इस प्रकार जीवक ने तक्षशिला से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि हासिल की।
जीवक से जुड़ी कहानी
तक्षशिला से ज्ञान प्राप्त कर वे भ्रमण करने लगे। भ्रमण के क्रम में वे साकेत पहुचे। वहाँ उनकी मुलाकात एक व्यपारी से हुई। उस व्यपारी की पत्नी कई वर्षों से विमार चल रही थी। अनेकों उपचार के बाद भी वह ठीक नहीं हो रही थी।
व्यपारी ने जीवक से उनकी पत्नी के इलाज का अनुरोध किया। जीवक ने उस व्यपारी की पत्नी का उपचार शुरू किया। कुछ ही दिनों में वह रोगमुक्त हो गई। इस प्रकार व्यपारी ने उन्हें ढेर सारे धन देकर विदा किया।
भगवान बुद्ध के चिकित्सक के रूप में नियुक्ति
उसके बाद जीवक साकेत से राजगृह पहुच गए। जहाँ जीवक का भव्य स्वागत किया गया। उस बक्त राजा बिंबसार भगंदर रोग से पीड़ित थे। जीवक ने अपने उपचार से कुछ ही दिनों में राजा बिंबसार को रोग मुक्त कर दिया।
जब राजा निरोग हो गए तब बहुत खुश हुए। कहा जाता है की राजा ने खुश होकर ढेर सारे धन दान में दिए। राजा बिंबसार ने उन्हें राजवैद्य नियुक्त कर दिया। चूंकि बिंबसार बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।
इसलिए राजा ने जीवक को राजवैध के अलावा महात्मा बुद्ध और बौद्ध भिक्षुओं का चिकित्सा की भी जिम्मेदारी सौंप दी। राजा बिंबसार के उपरांत जीवक उनके उत्तराधिकारी अजातशत्रु के राज वैद्य भी बने।
कहा जाता है की जीवक से प्रभावित होकर अजातशत्रु ने बौद्ध धर्म अपनाया था।
प्राचीन भारत के महान आयुर्वेदाचार्य थे जीवक
‘जीवक’ के पास आयुर्वेद के ज्ञान का अथाह भंडार था। जीवक अपनी चिकित्सा के लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसिद्ध थे। अपने जीवन काल में जीवक का यश मगध साम्राज्य के साथ-साथ अन्य देशों तक फैल गया।
इन्होंने अपने चिकित्सा से बड़े-बड़े राजा और महाराजाओं को भी रोगमुक्त किया।
उज्जयिनी नरेश पज्जोत का उपचार
एक समय की बात है उज्जयिनी नरेश पज्जोत अत्यंत ही बीमार हो गए। लाख दवाई के बाद भी वे स्वस्थ नहीं हो पा रहे थे। उन्हें जब जीवक की ख्याति के बारे में पता चला तब उन्होंने बिंबसार से अनुरोध कर अपने चिकित्सा के लिए बुलाया।
कहते हैं की उनके चिकित्सा में घी एक जरूरी घटक था। लेकिन उज्जयिनी नरेश पज्जोत को घी से अत्यंत ही घृणा थी। लेकिन जीवक ने राजा को बिना बताये घी मिश्रित कर औषधि तैयार कर राजा को दे दिया।
उस औषधि के प्रयोग से राजा कुछ ही दिनों में निरोग हो गया। हालांकि राजा को जब पता चला तो वह बहुत गुस्सा हुए थे लेकिन जब उस औषधि के प्रयोग से वे निरोग हो गए तब सब कुछ ठीक हो गया।
जीवक शल्य-चिकित्सा में भी निपुण थे।
जीवक ओषधीय चिकित्सा के साथ-साथ शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन) में भी बड़े निपुण थे। उन्होंने कई रोगियों का शल्य-चिकित्सा द्वारा उपचार किया। उनके द्वारा कासी में एक रोगी के पेट का भी ऑपरेशन का जिक्र मिलता है।
जीवक को ओषधि, शल्य-चिकित्सा के अलावा शिशु रोग के उपचार में महारत हासिल थी। इसी कारण से जीवक का नाम ‘कोमारभच्च‘ पड़ा।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –
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जीवक वैद्य किस वंश के काल में थे?
प्राचीन भारत के एक महान आयुर्वेदाचार्य थे जीवक। भारत के प्राचीन वैध जीवक मौर्य वंश के समकालीन थे। वे मौर्य नरेश के राजवैध थे।
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भारत में आयुर्वेद के जन्मदाता किसे कहते हैं?
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता कहा जाता है।
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जीवक किसके दरबार में था?
जीवक मध्य साम्राज्य में मगध नरेश के राजवैध थे। वे मगध सम्राट विंदुसार के दरवार में रहते थे।
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