Biography : वैज्ञानिक आत्माराम की जीवनी | Biography of Atmaram in Hindi
डॉ आत्माराम ( Dr. Atma Ram Indian scientist in Hindi ) ऑप्टिकल कांच और सिरेमिक क्षेत्रों से जुड़े भारत के महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर गहन शोध कार्य कीये।
उनेक ऑप्टिकल काँच निर्माण की नई खोज ने भारत में काँच उद्धोग को बढ़ावा दिया। उन्होंने प्रयास से ही भारत काँच उद्योग के क्षेत्र में अनेकों उपलब्धियाँ हासिल की। आज भारत ऑप्टीकल ग्लास के क्षेत्र में आत्म निर्भर बन चुका है।
ऑप्टीकल ग्लास की निर्माण विधि की खोज डॉ. आत्माराम की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। उन्होंने अपने जीवन को विभिन्न प्रकार के काँच निर्माण के तरीकों को खोजने में समर्पित कर दिया।
वे केन्द्रीय ग्लास और सिरेमिक शोध संस्थान के डायरेक्टर रहे। सन 1966 के दौरान वे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान के महानिदेशक के पद पर पहुचे। काँच निर्माण में उनके खोज के कारण उन्हें देश व विदेश में कई सम्मान से सम्मानित किया गया।
उनकी स्मृति में ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ द्वारा प्रतिवर्ष ‘आत्माराम पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है। आइए भारत के इस महान वैज्ञानिक आत्मा राम की जीवनी के बारें में विस्तार से जानते हैं।
वैज्ञानिक आत्माराम जीवनी – Biography of Atmaram in Hindi
प्रारम्भिक जीवन
डॉ आत्माराम का जन्म 12 अक्टूबर 1908 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर के पास पिलाना नामक गाँव में हुआ था। वैश्य परिवार में जन्मे आत्माराम के पिता लाला भगवानदास पटवारी का काम करते थे।
डॉ आत्मा राम तीन भाई थे। वे अपने पिता के दूसरे संतान थे। कहते हैं की बचपन से ही आत्माराम बहुत ही विनम्र और भोले थे। लेकिन पढ़ने में वे अत्यंत ही कुशाग्र बुद्धि के थे।
उनके अंदर कठिन परिश्रम, सादगी, ईमानदारी और देश प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। परिवार के दयनीय स्थित से वे पूरी तरह अवगत थे।
शिक्षा दीक्षा
आत्माराम की प्रारम्भिक शिक्षा चाँदपुर में अपनी बड़ी बुआ के पास हुई। इस दौरान वे अपने खर्चे चलाने के लिए वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करते थे। यहाँ से मिडिल तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बनारस जाना पड़ा।
बनारस में उनका नामांकन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय हुआ। इस विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए उन्होंने सन 1924 में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने इंटर में विज्ञान विषय में प्रवेश लिया।
इस प्रकार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने सन 1926 में इंटर तथा 1928 में बी.एस.सी. की परीक्षा पास की। बनारस से स्नातक करने के बाद वे एम.एस.सी करने के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी आए।
हालांकि स्नातक में उनके मार्क्स कम नहीं थे लेकिन फिर भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में उनका दाखिला नहीं हुआ। लेकिन वे निश्चय के पक्के थे। उन्होंने अपने विद्वता से विश्वविद्यालय प्रशासन को मनाया फलतः उन्हें दाखिला मिला।
सन् 1931 मे उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.एस.सी. की परीक्षा में वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में टॉपर रहे। उनके प्रतिभा को देखकर सभी लोग दंग रह गए।
अपने प्रतिभा के बल पर वे छात्रवृत्ति पाने में सफल रहे। एम.एस.सी. के बाद वे फोटो-रसायन क्रियाओं पर अपने गुरु प्रो. धर के निर्देशन में शोध करने लगे। इस प्रकार प्रकाश रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर अनुसंधान के कारण उन्हें सन 1936 में डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त हुई।
करियर
डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त करने के बाद डॉ. आत्माराम भारतीय औद्योगिक अनुसंधान संस्थान से जुड़ गए। इस दौरान उनका परिचय महान वैज्ञानिक मेघनाद साहा और शांतिस्वरूप भटनागर से हुई। डॉ. आत्माराम इनसे मिलकर बहुत प्रभावित हुए।
उसके बाद वे देश में स्थापित प्रथम काँच और सिरेमिक अनुसंधानशाला का कार्यभार सौंपा गया। यहाँ पर कार्य करते हुए वे अपने मेहनत और कार्य के वल पर डायरेक्टर के पद तक पहुंचे।
उन्हें 21 अगस्त 1966 को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद का महानिदेशक बनाया गया। करीब 7 वर्षों तक वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में प्रधान सलाहकार के पद पर भी रहे।
इसके अलबा वे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सचिव के पद को भी सुशोभित किया।
योगदान
इस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। और वैज्ञानिक के सामने युद्ध में सैनिकों के काम में आने वाली बस्तुएं बनाने की प्राथमिकता थी। इस दौरान युद्ध में काम आने वाली अग्निशामक पदार्थों की खोज में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
साथ ही उन्होंने ऑप्टिकल कांच की खोज की। ऑप्टिकल कांच एक प्रकार का बेहद ही शुद्ध कांच होता है। इस काँच का उपयोग सूक्ष्मदर्शी के साथ-साथ नाना प्रकार के सैन्य उपकरण में किया जाता है।
डॉ. आत्माराम ने कड़ी मेहनत और लगन से शोध करते हुए अपने देश में ही ऐसा कांच बनाने की विधि की खोज कर डाली।
उपलब्धियां
ऑप्टीकल काँच की निर्माणविधि की खोज इनकी सबसे महत्त्वपूर्ण खोज मानी जाती है। डॉ. आत्माराम के ही अथक प्रयास का प्रतिफल है की आज सेना के उपकरण में उपयोग की जाने वाली ऑप्टिकल काँच का निर्माण देश में ही संभव हो सका।
शुरू में इनके द्वारा खोज की गई ऑप्टीकल काँच की गुणवत्ता पर सवाल कीये गए। लेकिन जब भारत सरकार ने डॉ. आत्माराम द्वारा निर्मित ऑप्टिकल काँच को विदेशी लैब में जाँच कराया।
तब जाँच मे यह बात सामने आई की भारत में निर्मित ऑप्टिकल काँच की गुणवत्ता अत्यंत ही उच्चकोटि की है। उनकी इस खोज को पूरी वैज्ञानिक जगत में सराहा गया।
इसके अलावा उन्होंने अभ्रक को पीसने की नई विधि, काँच की संरचना और काँच के रंगों से संबंधित कई शोध कीये। इसका परिणाम यह हुआ की देश में काँच उद्धोग को बढ़ावा मिला।
आज भारत ऑप्टीकल काँच की सभी आवश्यकता को पूरी करने में सक्षम है। आज सैन्य जरूरत से लेकर कई अन्य कामों उपयोग की जाने वाली ऑप्टिकल काँच के निर्माण में भारत आत्मनिर्भर है।
सम्मान व पुरस्कार
ब्रिटेन की प्रसिद्ध संस्थान सोसाइटी ऑफ ग्लास टैक्नोलॉज ने उन्हें अपना फैलो बनाकर सम्मानित किया। सन् 1948 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय काँच आयोग के सदस्य तथा अंतरराष्ट्रीय मृत्तिका अकादमी जिनेवा के मनोनीत सदस्य बनाये गये।
उन्हें भारतीय विज्ञान परिषद् के महामंत्री बनने को भी मौका मिला। इसके साथ ही वे 1966 से 1971 तक भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक के पद पर विराजमान रहे।
भारत सरकार उनके उनके अद्वितीय कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया। सन 1959 में उन्हें डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर मेडल से सम्मानित किया गया।
उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश वैज्ञानिक अनुसंधान समिति पदक प्रदान किया गया। उन्हें बड़ौदा विश्वविद्यालय ने के. जी. नायक स्वर्णपदक से अलंकृत किया।
साथ ही उन्हें अखिल भारतीय काँच निर्माता संघ द्वारा मान-पत्र और जय तुलसी फाउंडेशन द्वारा अणुव्रत पुरस्कार प्राप्त हुआ।
आत्माराम पुरस्कार
भारत द्वारा इस महान वैज्ञानिक की यादगार में हर वर्ष ‘आत्माराम पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है। भारत सरकार के ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ द्वारा दिए जाने वाले सम्मान में यह सबसे प्रतिष्ठित सम्मान है।
यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उन लोगों को प्रदान किया जाता है। जिन्होंने वैज्ञानिक एवं तकनीकी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया हो।
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान’ द्वारा प्रतिवर्ष को लोगों को चुना जाता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत एक लाख रुपये की राशी तथा प्रशंसीत पत्र प्रदान कीये जाते हैं।
डॉ आत्माराम की रचनायें
डॉ आत्माराम एक वैज्ञानिक के साथ साथ एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने भौतिक रसायन, प्रकाश रसायन, काँच और सिरेमिक विषयों पर करीब 100 से भी ज्यादा शोध पत्र लिखे।
डॉ आत्माराम हमेशा हिन्दी के पक्षधर रहे। हिन्दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्य के लेखन में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। ‘रसायनशास्त्र की कहानी‘ हिंदी में लिखी उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना मानी जाती है।
निधन
भारत में काँच उददोग के विकास के लिए डॉ. आत्माराम ने अपने सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। डॉ. आत्माराम की मृत्यु 6 फरवरी 1983 को हुआ। उनके सादगी पूर्ण जीवन को देखते हुए लोग उन्हें गाँधीवादी वैज्ञानिक भी कह कर संबोधित करते थे।
डॉ आत्माराम कौन थे ?
डॉ आत्माराम ऑप्टिकल कांच और सिरेमिक क्षेत्रों से जुड़े हमारे देश के महान वैज्ञानिक थे।
वैज्ञानिक आत्मा राम का जन्म कब हुआ ?
वैज्ञानिक डॉ आत्माराम का जन्म 12 अक्टूबर 1908 को यूपी के पिलाना नामक गाँव में हुआ था।
आत्माराम पुरस्कार कौन प्रदान करता है ?
यह पुरस्कार भारत सरकार के ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ द्वारा प्रदान किया जाता है।
आपको वैज्ञानिक आत्माराम की जीवनी (DR. ATMARAM BIOGRAPHY IN HINDI ) जरूर अच्छी लगी होगी, अपने सुझाव से अवगत करायें।
बाहरी कड़ियाँ (External links)
- Atma Ram (scientist) – Wikipedia
- Former Directors Atma Ram – CSIR-Central Glass & Ceramic Research Institute
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