पूर्णिमा सिन्हा की जीवनी | Biography of Poornima Sinha in Hindi

पूर्णिमा सिन्हा की जीवनी | BIOGRAPHY OF POORNIMA SINHA IN HINDI
पूर्णिमा सिन्हा की जीवनी | BIOGRAPHY OF POORNIMA SINHA IN HINDI

भारतीय वैज्ञानिक डॉ पूर्णिमा सिन्हा अपने जमाने के प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री थी। डॉ पूर्णिमा सिन्हा को क्ले मिनरल्स के एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये जाना जाता है।

भौतिकविज्ञान में ‘पी एच डी’ प्राप्त करने वाली पूर्णिमा सिन्हा बंगाल की पहली महिला थी। वे एक शिक्षित परिवार में पैदा हुई थी। जब उस जमाने में अन्य लड़कियां कई सामाजिक बंधन में जकड़ी थी।

1955 में उस समय उन्होंने कलकता विश्व-विधालय से भौतिकी विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। बचपन से ही उनके अंदर भौतिकविज्ञान के प्रति गहरी रुचि थी

पूर्णिमा सिन्हा की जीवनी | BIOGRAPHY OF POORNIMA SINHA IN HINDI
पूर्णिमा सिन्हा की जीवनी | BIOGRAPHY OF POORNIMA SINHA IN HINDI

यही कारण रहा की वे आगे चलकर भौतिकशस्त्र को ही अपने कैरियर के रूप में चुना। वह अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में बायोफिज़िक्स विभाग में भी शोधकार्य करते हुए कई वर्ष विताये।

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उन्होंने मिट्टी और डीएनए की ज्यामिति के बीच संरचनात्मक समानताओं का अध्ययन किया। भौतिकी विज्ञान के अलावा उन्हें रचनात्मक कार्य बेहद पसंद थे। उन्हें गायन, पेंटिंग और लेखन जैसी कलात्मक गतिविधियों में गहरी रुचि थी।

डॉ पूर्णिमा सिन्हा की जीवनी – Biography of Poornima Sinha in Hindi

प्रारम्भिक जीवन जन्म व शिक्षा

डॉ पूर्णिमा का जन्म 12 अक्टूबर 1927 एक शिक्षत और आधुनिक सोच रखने वाले बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ. नरेश चंद्र सेन-गुप्ता था। वे अपने माता पिता की सबसे छोटी संतान थी।

उनके पिता डॉ. नरेश चंद्र सेन-गुप्ता ने अपने सभी संतान को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया। जबकि उस जमाने में, लड़कियों पर कई तरह की वंदिसे होती थी। लेकिन वे बेटा और बेटी में फर्क नहीं समझते थे।

वे दोनों को समान अवसर देने की वकालत करते थे। क्योंकि वे खुद एक वकील और प्रसिद्ध शिक्षाविध थे। उस बक्त ढाका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे थे।

पारिवारिक जीवन

डॉ पूर्णिमा सिन्हा की शादी प्रसिद्ध मानव विज्ञानी प्रोफेसर सुरजीत चंद्र सिन्हा के साथ हुई। प्रोफेसर सुरजीत चंद्र सिन्हा विश्व-भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पद पर भी रहे। उन्हें दो बेटियां हैं जिनके नाम सुपर्णा सिन्हा और सुकन्या सिन्हा है।

आगे चलकर उनकी दोनों बेटियां भी अपने माँ के तर्ज पर विज्ञान को चुना। आज उनकी बड़ी बेटी सुपर्णा सिन्हा रमन अनुसंधान संस्थान में और छोटी सुकन्या सिन्हा भारतीय सांख्यिकी संस्थान में भौतिक विज्ञानी के रूप में कार्यरत हैं।

शिक्षा-दीक्षा

वैज्ञानिक पूर्णिमा सिन्हा की प्रारंभिक शिक्षा अपने ही बड़ी बहन द्वारा स्थापति लेक स्कूल से हुई। उसके बाद उन्होंने कुछ वर्ष आशुतोष कॉलेज में फिर स्कॉटिश चर्च कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की।

तत्पश्चात उनका नामांकन कलकता के प्रतिष्ठित राजाबाजार साइंस कॉलेज में हुआ। यहाँ वे प्रख्यात सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर सत्येंद्र नाथ बोस की शिष्या थी।

बात सन 1942 की है, द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया था। डॉ पूर्णिमा सिन्हा अपने अनुसंधान के लिए आवश्यक एक्स-रे उपकरण बनाने के लिए स्पेयर पार्ट्स के बारें में सोच रही थी।

तभी उन्होंने पाया की कलकत्ता के फुटपाथों पर सैन्य उपकरणों के अवशेष स्क्रैप के रूप में बिक रहे हैं। उन्होंने उस अधिशेष सैन्य उपकरणों में से जरूरी चीजों को लेकर अपने अनुसंधान में उपयोग किया।

उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के अधिशेष सैन्य उपकरणों के स्क्रैप से एक एक्स रे मशीन भी बनाई। इस प्रकार उन्होंने प्रोफेसर सत्येंद्र नाथ बोस के निर्देशन में मिट्टी के खनिजों के एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी पर शोधकार्य करना शुरू किया।

उन्होंने मिट्टी के खनिजों के एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी पर खैरा प्रयोगशाला में अनुसंधान करते हुए 1950 में पी एच डी की उपाधि धारण की। वह ऐसा करने वाली बंगाल की पहली महिला बनी।

करियर 

भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में डॉ पूर्णिमा का योगदान सराहनीय रहा। उन्होंने मिट्टी के खनिजों के एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी में पी एच डी प्राप्त कर सबको अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

उन्होंने भारत के विभिन्न प्रकार की मिट्टी का अध्ययन किया। डॉक्टरेट के बाद डॉ पूर्णिमा गहन अनुसंधान हेतु अमेरिका चली गई। डॉ पूर्णिमा ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफ़ोर्निया में बायोफिज़िक्स री-सर्च ग्रुप में शामिल हो गई।

अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने ‘जीवन की उत्पत्ति‘( Origin of Life) के’ ऊपर बायोफिजिक्स में अनुसंधान किया। उन्होंने डीएनए डबल हेलिक्स में दिखाई देने वाली मिट्टी और बेस से जुड़ी संरचनाओं का गहन अध्ययन किया।

अमेरिका से स्वदेश वापस आने के बाद वे 1964 अगले दो दशक तक ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और जेसीबी बोस संस्थान से जुड़ी रहीं।

तत्पश्चात डॉ सिन्हा अपने शोध हेतु बंगाल के जदावपुर स्थित ‘सेंट्रल ग्लास और सिरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट(CGCRI) से जुड़ गई।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉ पूर्णिमा सिन्हा

डॉ पूर्णिमा सिन्हा एक वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि कलाकार, लेखक और संगीतकार भी थी। डॉ सिन्हा बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। उन्होंने कलात्मक क्षेत्र में भी अपने प्रतिभा से सबको प्रभावित किया।

उन्होंने यामिनी गांगुली से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की। साथ ही वह पेंटिंग की कला प्रसिद्ध चित्रकार गोपाल घोष से सीखी।

वे तबला भी अच्छा बजाती थी। तबला वादन का ज्ञान उन्होंने पंडित ज्ञान प्रकाश घोष से पाया। इसके साथ ही उन्हें मूर्तिकला में भी गहरी रुचि थी।

रचनात्मक योगदान

जैसा की हम जान चुके हैं डॉ पूर्णिमा बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न थी। वे एक अच्छे रचनाकार भी थी। उसने अंग्रेजी और बंगाली दोनों भाषाओं में अपनी रचनाएं लिखी।

डॉ पूर्णिमा सिन्हा पहली भौतिक वैज्ञानिक हुई जिन्होंने संगीत के ऊपर भी किताब लिखी। उन्होंने इरविन श्रोडिंगर के ‘माइंड एंड मैटर’ का बांग्ला भाषा में अनुवाद भी किया।

साथ ही उन्होंने बंगाल साइंस एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित बंगाली वैज्ञानिक पत्रिका ‘ज्ञान ओ बिजनन‘ में अपना योगदान दिया।

पुरस्कार व सम्मान

कहा जाता है की डॉ. पूर्णिमा ने कभी भी सम्मान या पुरस्कार की परवाह नहीं की। लेकिन अपनी रचनात्मक और कलात्मक क्षमता का पूरा उपयोग कर नारी जगत के लिए सम्मान और प्रेरणा का पात्र बनी।

निधन

भारत के महान वैज्ञानिक, लेखिका, कलाकार डॉ पूर्णिमा सिन्हा का 11 जुलाई 1915 को बंगलुरु में निधन हो गया। उन्होंने 87 वर्ष के अपने जीवन काल में अपने देश की विविध रूपों में योगदान दिया। डॉ पूर्णिमा पूरी नारी जगत के लिए प्रेरणा स्रोत है।

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