वैज्ञानिक एमजीके मेनन की जीवनी | MGK Menon Biography in Hindi

एम.जी.के. मेनन (MGK Menon) भारत के महान भौतिक वैज्ञानिक थे। उन्हें कॉस्मिक रे और कण भौतिकी में उल्लेखनीय कार्य के लिए जाना जाता है। उन्हें म्यूआन और पाइआन के जैसे कुछ नए मौलिक कणों के खोज के लिए जाना जाता है।

कर्नाटक के मंगलोर में पैदा हुए इस महान वैज्ञानिक ने देश के कई वैज्ञानिक संस्थान में उच्च पद पर रहे। वे भारत की सभी तीनों विज्ञान अकादमियों के अध्यक्ष पर रहे।

उन्होंने महान वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता सी. एफ. पावेल के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने कैरीयर की शुरुआत टाटा इन्स्टीच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च(TIFR) से की।

उन्होंने भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के पद को सुशोभित किया। विज्ञान में अहम योगदान के लिए एम.जी.के. मेनन  को अनेकों सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए।

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वैज्ञानिक एमजीके मेनन की जीवनी | MGK Menon Biography in Hindi
वैज्ञानिक एम जी के मेनन

उन्हें भारत सहित दुनियाँ के कई विश्व विधालय ने द्वारा अनेकों मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी गई। आईए इस महान वैज्ञानिक एम.जी.के. मेनन (MGK Menon in Hindi) की जीवनी के बारें में विस्तार से जानते हैं।

वैज्ञानिक एम जी के मेनन की जीवनी – MGK Menon Biography in Hindi

जन्म व पारिवारिक जीवन

एम.जी.के. मेनन  का पूरा नाम माम्बिलिकलाथिल गोविंद कुमार मेनन (Mambillikalathil Govind Kumar Menon) है।

एम.जी.के. मेनन (M. G. K. Menon) का जन्म 28 अगस्त 1928 को ब्रिटिश भारत में मद्रास प्रेसिडेंसी के अंतर्गत कर्नाटक के मंगलोर में हुआ। उनका परिवार केरल से था।

उनके पिता का नाम किझेकापत शंकर मेनन (Kizhekapat Shankara Menon) था। उनके पिता ब्रिटिस  सरकार में जिला और सत्र न्यायाधीश के उच्च पद पर तैनात थे। उन्हें घर के लोग तथा उनके दोस्त प्यार से गोकु (MGK or GoKu) कहकर बुलाते थे।

चूंकि उनके पिता सरकारी नौकरी में थे। इस प्रकार ट्रांसफर की वजह से उनका बचपन भारत के विभिन्न भागों में बीता। मेनन साहब की पत्नी का नाम इंदुमति था। उन्हें दो संतान हैं।

शिक्षा दीक्षा

मेनन साहब की आरंभिक शिक्षा में मद्रास प्रेसिडेंसी के अंगर्गत ही हुई। उसके बाद आगे की पढ़ाई आगरा से हुई। आगरा से उन्होंने 1942 में हाई स्कूल की परीक्षा पास की।

उसके बाद आपने सन 1946 में जोधपुर स्थित जसवंत कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद आप मुंबई आ गए।

मुंबई के रॉयल इन्स्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से आपने प्रसिद्ध स्पेक्ट्रोस्कोपिस्ट एन. आर. तावड़े के मार्गदर्शन में सन 1949 में भौतिकी में एम.एस.सी. की परीक्षा पास की। एम.एस.सी पास करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंगलेंड चले गए।

इंगलेंड में उन्होंने ब्रिस्टोल विश्वविद्यालय में कॉस्मिस रे और कण भौतिकी के ऊपर शोध किया। इस प्रकार उन्होंने नोबल पुरस्कार विजेता सी. एफ. पावेल के नेतृत्व में अनुसंधान करते हुए सन 1960 में पी.एच.डी (डॉक्टरेट) की उपाधि ग्रहण की।

कैरियर

इंगलेंड से डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद वे अपने देश भारत वापस आ गए। स्वदेश वापस आकार वे सन 1955 टाटा इन्स्टीच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च, मुंबई से अपने कैरियर की शुरुआत की।

उन्होंने डॉ होमी जहांगीर भाभा के कहने पर इस रिसर्च केंद्र से जुड़े। इस दौरान उन्होंने ब्रह्मांडीय किरणें, कण भौतिकी में अपने शोध को बढ़ावा दिया।

उन्होंने ब्रह्मांडी किरणों के अध्ययन के क्षेत्र में अन्वेषण और विशेषकर प्राथमिक कणों की उच्च ऊर्जा परस्पर क्रिया में विशेषज्ञता हासिल की।

डॉ भाभा के एयर क्रेश में आकस्मिक निधन के वाद में वे सन 1966 में इसी टाटा इन्स्टीच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च, मुंबई के निदेशक बने। उस बक्त उनकी उम्र मात्र 38 वर्ष थी, तथा वे करीव 35 साल तक इस पद पर रहे।  

उपलब्धियां

उन्होंने ने विज्ञान में विकास के साथ-साथ देश के कई महत्वपूर्ण पद को सुशोभित किया। वे सन 1986 से 89 तक भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर रहे। वे 1990-96 तक राज्य सभा के सदस्य के रूप में देश की सेवा की।

वे देश के सभी तीनों विज्ञान अकादमियों के अध्यक्ष रहे। ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडमेंटल रिसर्च, मुंबई के निदेशक के रूप में उन्होंने 1966-1975 तक काम किया। वे

12 वर्षों तक भारत सरकार के सचिव के रूप में इलेक्ट्रानिक्स, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, रक्षा अनुसंधान, पर्यावरण से जुड़े रहे। उन्होंने सन 1972 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष पद आसीन हुए।

वे करीव 4 वर्षों (1974-78) तक रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन से जुड़े रहे। इसके साथ ही वे सन 1978 से 1981 तक वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महा निदेशक पद पर रहे। इसके अलावा भी वे कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया।  

सम्मान व पुरस्कार

वे देश के उन गिने चुने वैज्ञानिक में से हैं जिन्हें भारत की सभी तीन विज्ञान अकादमियों के फ़ेलो होने का गौरव प्राप्त है।

उन्हें भारत की सभी तीनो विज्ञान अकादमियां The Indian Academy of Sciences (IAS),  The Indian National Science Academy (INSA) और The National Academy of Sciences (India) (NASI) ने उन्हें अपना फ़ेलो बनाया।

उन्हें देश विदेश के कई विश्व विधालय द्वारा डी एस सी की उपाधि प्रदान की गई। इंगलेंड के रॉयल सोसायटी ने उन्हें 1970 में अपना फैलो चुना। वे सन 1977 में ‘द इन्स्टिट्यूट ऑफ़ फ़िज़िक्स‘, यू.के. के मानद फ़ेलो भी चुने गए।

प्रो मेनन थर्ड वर्ल्ड अकाडेमी ऑफ़ साइंसस के संस्थापक फ़ेलो(सदस्य) में एक हैं। वे सन 1981-82 के बीच भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ के अध्यक्ष पर रहे।

पुरस्कार

देश व विज्ञान के विकास में अहम योगदान को देखते हुए भारत के तीनों प्रसिद्ध नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। उन्हें भारत सरकार ने सन 1961 में पद्मश्री, 968 में पद्मभूषण और सन 1985 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया। इसके अलावा उन्हें निम्नलिखित पुरस्कार मिले।

  • सन 1960 में उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • उन्हें 1984 में आइएससीए चटर्जी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • ओमप्रकाश भासिन पुरस्कार से उन्हें सन 1985 में सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1988 में उन्हें शिरोमणि पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • वे 1994 में मोदी विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित हुए।  
  • सन 1996 में उन्हें अब्बास सलीम पदक से नवाजा गया।

निधन

इस महान वज्ञानिक एम.जी.के. मेनन  का निधन 22 नबम्बर 2016 को नई दिल्ली स्थित अपने आवास में हो गया। उन्होंने 88 वर्ष के अपने जीवन काल में विज्ञान के कई आयामों को छुआ।

उनके निधन से भारत ने एक महान वैज्ञानिक, सच्चे शिक्षाविद को खो दिया। भौतिक विज्ञान में मेनन साहब के योगदान तथा राष्ट्र निर्माण की दिशा में उठाए गए कदम के लिए उन्हने हमेशा याद किया जायेगा।

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