Mokshagundam Visvesvaraya in Hindi– मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया भारत के महान इंजीनियर थे। भारत में कई बांधों के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने अपने देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य कीये।
अनेकों पुलों और बांधों के निर्माण के द्वारा उन्होंने लोगों को बाढ़ की समस्या से निजात दिलाया। उन्होंने पहली बार खड़कवासला बांध में पानी की रोक-थाम हेतु स्वचालित दरवाजों का निर्माण कराया।
इस दरवाजा की तकनीक अन्य बांध के प्रचलित दरवाजे से एक-दम अलग थी। यह दरवाजा पानी अधिक होने की स्थिति में स्वयं बंद व खुल सकते थे। मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया ने कृष्णार्जुन सागर बांध के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत के आजादी से पहले और बाद तक देश के औद्योगिक विकास के लिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। उनके अद्भुत प्रतिभा को देखते हुए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें केसरे हिंद के सम्मान से सम्मानित किया।
आईए इस लेख में हम महान वैज्ञानिक मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जीवनी, उनका योगदान, सम्मान और पुरस्कार के बारे में जानते हैं।
मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया जीवनी – Biography Mokshagundam Visvesvaraya in Hindi
प्रारंभिक जीवन व शिक्षा दीक्षा
डॉ. मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म दिनांक 15 सितंबर 1861 ईस्वी में कर्नाटक के मैसूर के पास हुआ था। उनका गाँव मदनहल्ली, बंगलौर से करीव 50 की मी दूर कर्नाटक के कोलार जिले में पड़ता है।
जैसे मध्यप्रदेश का पन्ना जिले हीरे के खान के लिए प्रसिद्ध है उसी तरह कर्नाटक का यह जिला सोने के खान के जाना जाता है। विश्वेश्वरैया के पिता का नाम पंडित श्रीनिवास शास्त्री और माता का नाम वेंकचंपा बताया जाता है।
उनके माता पिता बड़े ही सात्विक प्रकृति के लोग थे। डॉ. मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया बचपन से ही पढ़ाई में बड़े ही मेधावी थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से हुई। घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी।
लेकिन वे कभी हतोत्साहित नहीं हुए। अपने कठिन परिश्रम और लग्न से उन्होंने आगे का रास्ता चुन लिया। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल से प्राप्त कर आगे की पढ़ाई के लिए बंगलौर चले गए।
बंगलोर में अपने किसी रिश्तेदार के घर रहते हुए उन्होंने हाई स्कूल तथा बी.ए. की परीक्षा पास कि। यदपि बंगलोर में रहते हुए उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहाँ पर वे बच्चों को tuition से अपना गुजारा करते थे।
अपनी कठोर मेहनत और लग्न के वल पर उन्होंने छात्रवृत्ति हासिल की। उसके बाद उन्होंने पूना के विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश लिया। यहाँ उन्होंने सिविल इंजिनीयरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
सिविल इंजिनीयरिंग की परीक्षा में उन्होंने सन 1883 में बंबई विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया।
कैरियर
एम विश्वेश्वरैया ने अपने कार्यों से हमेशा लोगों को प्रभावित किया। बंबई विश्वविद्यालय से पास आउट होने के बाद उनकी नियुक्ति सहायक अभियंता के पद पर हुई। बड़े बड़े अंग्रेज इंजीनियर उनकी सूझ-बुझ और प्रतिभा से बहुत प्रभावती हो गए।
तत्कालीन बाम्बे प्रेसिडेंसी की अंग्रेज सरकार ने सन् १८८४ में उन्हें नासिक मे सेवा के लिए भेजा। सहायक अभियंता के पद पर काम करते हुए नासिक में उन्होंने बहुत ही कम समय में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
उपलब्धियाँ
कहा जाता था की उस बक्त नगरों में जल की आपूर्ति एक बहुत बड़ी समस्या थी। इंजीनियर के लिए एक बड़ी चुनौती थी की नगरों के लिए जल कहाँ से और कैसे लाया जाय। कैसे इन जलों को स्टोर कर घर-घर पहुंचाया जाय।
सीमित संशासन में उन दिनों इन चीजों को कार्यान्वित करना बड़ा मुश्किल भरा काम था। मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया ने अपने सूझ-बुझ से इन समस्या का हल निकाला।
साथ ही सन 1894 में सक्खर बांध का निर्माण लोगों को जल की समस्या से मुक्ति दी। इस कठिन कार्य के सफलता पूर्वक कार्यान्वियन से पूरे भारत में उनका नाम रोशन हो गया।
उनके कार्य से संतुष्ट होकर तत्कालीन सरकार ने उन्हें सुपरिटेंडिंग इंजीनियर के पद पर पदोन्नति प्रदान कर दी। उसके बाद उन्हें अन्य नगरों के जल समस्या का काम सौंपा गया।
उन्होंने पूना, बंगलौर, मैसूर, बड़ौदा, ग्वालियर, सूरत, नासिक, इंदौर, कोल्हापुर, नागपुर, धारवाड़, बीजापुर, सांगली, कराची जैसे शहरों के लिए भी जल व्यवस्था पर काम किया।
नौकरी से त्यापत्र
उन्होंने अपने कार्य और प्रतिभा से अपना लोहा मनवाया। उनकी प्रतिष्ठा इतनी अधिक बढ़ गई की उनका नाम देश के बड़े इंजीनियरों में शुमार हो गया। लेकिन इतनी शीघ्र पदोन्नति और प्रतिष्ठा से नाखूस होकर उनके कुछ साथी उनसे जलने लगे।
ईर्ष्या के कारण उन्हें नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह के प्रपंच कीये जाने लगे। मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया को इस तरह के माहौल में काम करना एकदम अच्छा नहीं लग रहा था। वे शांत प्रकृति के आदमी थे।
फलतः उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। यदपि नियमानुसार नौकरी से त्यागपत्र के बाद पेंशन नहीं दिया जाता था। लेकिन सरकार ने उनके कामों को ध्यान में रखते हुए उन्हें पेंशन की मंजूरी दी।
नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद भी वे कुछ दिनों के लिए विदेश चले गए। लेकिन वापस आकार फिर से देश की सेवा में लग गए। उन्होंने हैदराबाद रियासत के निजाम के आग्रह पर हैदराबाद नगर को मुसी नदी के बाढ़ से सुरक्षित किया।
उन्होंने एक योजना के तहद काम करते हुए हैदराबाद को मुसी नदी के बाढ़ से स्थायी रूप से हल निकाला। उसके पहले हर साल मूसी नदी में आई भयंकर बाढ़ से हैदराबाद में भयंकर समस्या उत्पन्न हो जाती थी।
उसके बाद उन्हें मैसूर राज्य के महाराजा कृष्णराज वाडियार ने अपने यहां बुलाया। मैसूर के राज्य ने उन्हें मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता का पद प्रदान किया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने मैसूर राज्य के महाराजा का दिल जीत लिया।
उन्होंने कृष्णराज सागर बांध का निर्माण कावेरी नदी पर किया। इस बांध के निर्माण से राज्य में सिंचाई और विजली की आपूर्ति होने से मैसूर का काया पलट गया। यह देश का पहला परियोजना था जहां जल से विजली की उत्पादन शरू हुआ था।
उनके इस कार्य को समूचे देश में सराहा गया। लोगों को विजली की समस्या से मुक्ति का एक नया रास्ता दिखाई दिया।कहा जाता है की विश्वेश्वरैया जो भी काम अपने हाथ में लेते उसे पूरा कर के ही दम लेते थे।
कृष्णराज सागर बाँध के निर्माण के समय भी उन्हें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। रात दिन वरिष होने से सारा जन-जीवन अस्त व्यस्त हो गया। कुछ मजदूर काम छोड़कर भाग गए।
लेकिन बाकी बचे मजदूरों के वल पर ही उन्होंने मूसलाधार बारिश में भी तंबू डाल कर काम को पूरा किया।
मैसूर के दीवान का पद
विश्वेश्वरैया के अंदर कुशल इंजीनियर के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक का भी गुण मौजूद था। तीन साल से मैसूर के मुख्य इंजीनियर के पद पर कुशलता पूर्वक कार्य करने से महाराजा बहुत प्रभावित हुए।
उन्हें मैसूर के राजा ने 1912 में मैसूर रियासत का दीवान बना दिया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने मैसूर के लिए कई बड़े काम कीये। उन्होंने मैसूर राज्य में शिक्षा, कृषि तथा उद्योग-धंधों के लिए काफी काम कीये।
उन्होंने कल-कारखाना सहित मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना कर मैसूर राज्य को काफी तरक्की दिलाई। उन्होंने दूसरे देशों के रेशम विशेषज्ञों को बुलाकर मैसूर में रेशम उद्योग को नए सिरे से विकसित किया।
उन्ही के प्रयासों का परिणाम है की आज मैसूर चंदन तेल और चंदन-साबुन के लिए दुनियाँभर में प्रसिद्ध है। इसी कारण डॉ. विश्वेश्वरैया को आधुनिक मैसूर का निर्माता भी कहा जाता है। उन्होंने करीब नौ साल तक मैसूर की सेवा की।
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स पद पर नियुक्ति
उसके बाद M Visvesvaraya को भद्रावती कारखाने की दशा सुधारने हेतु आमंत्रित किया गया। उन्हें भद्रावती कारखाने के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के प्रेसीडेंट चुना गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने इस कारखाने का पुनर्गठन कर जीर्णोद्धार कर दिया।
उनके प्रयास के फलसरूप भद्रावती कारखाने एक लाभदायक संस्थान के रूप में उभरा। इसके साथ ही उन्होंने औद्योगिक इकाई ‘जय चाम राजेंद्र आकूपेशनल इंस्टीट्यूट‘ की भी स्थापना की।
टाटा इस्पात कंपनी में डायरेक्टर का पद
कहा जाता है की भद्रावती कारखाने में लाभदायक सुधार की खबर जब टाटा मनेजमेंट को मिली। तब डॉ विश्वेश्वरैया को तत्कालीन बिहार के जमशेदपुर बुलाया गया। डॉ विश्वेश्वरैया से मिलकर टाटा कंपनी के मालिक अत्यंत ही प्रभावित हुए।
इस प्रकार टाटा ने एम विश्वेश्वरैया (M Visvesvaraya )को जमशेदपुर इस्पात कारखाने का निदेशक नियुक्त किया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने टाटा इस्पात कारखाने के उत्थान के लिए कई काम किया।
सम्मान व पुरस्कार
- उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा केसरी हिन्द का सम्मान से सम्मानी किया गया।
- साथ ही भारत के ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इंगलेंड का सबसे बड़े सम्मान सर की उपाधि प्रदान की।
- बंबई विश्वविद्यालय द्वारा 1930 में मानद डॉक्टरेट की उपाधि।
- भारत सरकार ने देश का सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न प्रदान किया।
- उनके सम्मान में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।
उनके संयत जीवन से सिख
डॉ. विश्वेश्वरैया की गिनती वर्तमान युग की श्रेष्ठतम भारतीय विभूतियों में की जाती है। डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया बड़े ही नेक दिल इंसान थे। वे नियम और समय को कड़ाई से पालन करते थे। राष्ट्रपति भवन में 3 दिन से रुकने का नियम नहीं है।
कहा जाता है की भारतरत्न सम्मान प्राप्त करने के उन्हें कुछ दिनों के लिए राष्ट्रपति भवन में रुकने अनुरोध किया गया। लेकिन वे अपने इरादा व नियम के अत्यंत ही पक्के थे।
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद के अनुरोध के बाद भी वे राष्ट्रपति भवन में वहाँ के नियमानुसार ३ दिन से अधिक नहीं रुके। उन्होंने हमेशा संयत रहने और अनवरत कार्य करने पर वल दिया।
इसी को उन्होंने सफलता का रहस्य बताया। समय पर उठना, खाना, सोना अपने टाइम टेबल का पालन करना को उनसे सीखे। यही कारण था की 100 साल की उम्र में भी वे हमेशा ऊर्जावान दिखते थे।
डॉ. विश्वेश्वरैया का निधन
भारतरत्न डॉ. विश्वेश्वरैया युगपुरुष थे। जिनके प्रयास से लाखों लोगों को रोजगार मिला। करोड़ों घरों बिजली की रोशनी से जगमगाया। जीवन के अंतिम क्षण तक उन्होंने देश के लिए काम किया।
लेकिन अंतिम सत्य को कोई टाल नहीं सकता। 101 साल की लंबी आयु के बाद डॉ. विश्वेश्वरैया 14 अप्रैल 1962 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद ने कहा था।
डॉ. विश्वेश्वरैया (M Visvesvaraya )उन महापुरुषों में थे जिन्होंने राष्ट्रीय निर्माण के अनेक पहलुओं में अमूल्य योगदान दिया। आज डॉ. विश्वेश्वरैया हमारे बीच नहीं हैं लेकिन देश उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।